मनुष्य एवं तिर्यच्च किस सहनन के माध्यम से कौन से स्वर्ग एवं नरक तक जाते हैं।इसका वर्णन इस अध्याय में है।
1. संहनन नाम कर्म किसे कहते हैं ?
जिसके उदय से हड़ियों के बंधन में विशेषता आती है, उसे संहनन नाम कर्म कहते हैं।
2. संहनन के कितने भेद हैं ?
संहनन के छ: भेद हैं। 1. वज़ऋषभनाराचसंहनन, 2. वज़नाराचसंहनन, 3. नाराचसंहनन, 4. अर्द्धनाराच संहनन, 5. कीलक संहनन, 6.असम्प्राप्तासूपाटिका संहनन।
3. वज़, ऋषभ, नाराच और संहनन का क्या अर्थ है ?
- वज - जो वज़ के समान अभेद्य अर्थात् जिसका भेदन न किया जाए उसे वज़ कहते हैं।
- ऋषभ - जिससे बाँधा जाए उसे ऋषभ (बेस्टन) कहते हैं।
- नाराच - नाराच नाम कील का है। जैसे - दरवाजे के कब्जों के बीच लोहे की कील होती है।
- संहनन - हड़ियों का समूह।
4. संहननों की परिभाषा बताइए ?
- वज़ऋषभनाराच संहनन - जिस शरीर में वज़ की हड़ियाँ हों, वज़ का ऋषभ हो और वज़ का नाराच हो, उसे वज़ऋषभनाराचसंहनन कहते हैं।
- वज़नाराचसंहनन - जिसमें वज़ के बंधन न हों, सामान्य बंधन से बाँधा जाए किन्तु कील व हड़ियाँ वज़ की हों, उसे वज़नाराच संहनन कहते हैं। जैसे - लोहे के सामान को सुतली से बांधना।
- नाराच संहनन - जिसमें वज़ विशेष से रहित साधारण नाराच से कीलित हड़ियों की संधि हो, उसे नाराच संहनन कहते हैं।
- अर्द्धनाराच संहनन - जिसमें हड़ियों की सन्धियाँ नाराच से आधी जुड़ी होती हैं, उसे अर्द्धनाराच संहनन कहते हैं।
- कीलक संहनन - जिसमें हड़ियाँ परस्पर में नोंक व गड़े के द्वारा फँसी हों, अर्थात् अलग से कील नहीं रहती, उसे कीलक संहनन कहते हैं।
- असम्प्राप्तासूपाटिका संहनन - जिसमें अलग-अलग हड्डियो से बंधी हों, परस्पर में कीलित न हों, उसे असम्प्राप्तासूपाटिका संहनन कहते हैं। (जै.सि.को, 4/155)
5. नरकगति, देवगति व एकेन्द्रिय जीवों में कौन-सा संहनन रहता है ?
नरकगति, देवगति व एकेन्द्रिय जीवों में किसी भी संहनन का उदय नहीं रहता है।
6. तिर्यउचगति में कितने संहनन रहते हैं ?
तिर्यच्चगति में छ: संहनन रहते हैं।
7. द्वीन्द्रिय से असंज्ञी पज्चेन्द्रिय तक के जीवों में कौन-सा संहनन रहता है ?
द्वीन्द्रिय से असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तक के जीवों में असम्प्राप्तासूपाटिका संहनन रहता है।
8. भोगभूमि के मनुष्य एवं तिर्यज्चों में कौन-सा संहनन रहता है ?
भोगभूमि के मनुष्य एवं तिर्यज्चों में मात्र वज़ऋषभनाराच संहनन रहता है।
9. मनुष्यगति में कितने संहनन रहते हैं ?
मनुष्यगति में छ: संहनन रहते हैं।
10. कर्मभूमि की महिलाओं में कितने संहनन रहते हैं ?
कर्मभूमि की महिलाओं में अंतिम तीन संहनन रहते हैं। (गोक, 32)
11. कौन-सा संहनन कौन-से गुणस्थान तक रहता है ?
वजत्रदृषभनाराच संहनन |
1 से 13 गुणस्थान तक |
वज्रनाराच्च और नाराच्च संहनन अर्द्धनाराच,कीलक संहनन और |
1 से 11 गुणस्थान तक |
असम्प्राप्तासूपाटिका संहनन |
1 से 7 गुणस्थान तक |
12. कौन-से संहनन वाला मरणकर कौन-से स्वर्ग तक जाता है ?
असम्प्राप्तासूपाटिका संहनन |
8 वें स्वर्ग तक |
कीलक संहनन |
12 वें स्वर्ग तक |
अर्द्धनाराच |
16 वें स्वर्ग तक |
नाराच्च संहनन |
नवग्रैवेयक तक |
वज्रनाराच |
नवअनुदिश तक |
वजत्रदृषभनाराच संहनन |
सर्वार्थसिद्धि एवं मोक्ष भी (गो.क.30) |
13. कौन-से संहनन वाला मरण कर कौन-सी पृथ्वी (नरक) तक जाता है ?
वजत्रट्टषभनाराच संहनन वाला |
सातवी पृथ्वी तक |
वज्रनाराच्च संहनन से अर्द्धनाराचसंहनन वाला |
छठवी पृथ्वी तक |
कीलक संहनन वाला |
पाँचवीं पृथ्वी तक |
असम्प्राप्तासूपाटिका संहनन वाला |
तीसरी पृथ्वी तक। (गो.क.31) |
14. पञ्चम काल के मनुष्य व तिर्यञ्चों में कितने संहनन होते हैं ?
पञ्चम काल के मनुष्य व तिर्यज्चों में अंतिम तीन संहनन होते हैं।
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