संसारी जीव का मरण के बाद नियम से जन्म होता है। वह जन्म कितने प्रकार का होता है। योनि एवं जन्म में क्या भेद है आदि का वर्णन इस अध्याय में है।
1. जन्म किसे कहते हैं ?
पूर्व शरीर को त्यागकर नवीन शरीर धारण करने को जन्म कहते हैं।
2. जन्म के कितने भेद हैं ?
जन्म के तीन भेद हैं -
- सम्मूच्छन जन्म - जो चारों ओर के वातावरण से शरीर के योग्य पुद्गलों को ग्रहण करते हैं, वह सम्मूच्छन जन्म है। जैसे - चुम्बक अपने योग्य लोह कण को ग्रहण करता है।
- गर्भजन्म - माता के उदर में रज और वीर्य के परस्पर गरण अर्थात् मिश्रण को गर्भ कहते हैं। अथवा माता के द्वारा उपभुत आहार के गरण होने को गर्भ कहते हैं। और इससे होने वाले जन्म को गर्भ जन्म कहते हैं।
- उपपाद जन्म - देव - नारकियों के उत्पत्ति स्थान विशेष को उपपाद और उनके जन्म को उपपाद जन्म कहते हैं। (स.सि. 3/31/322)
3. गर्भ जन्म के कितने भेद हैं ?
गर्भ जन्म के तीन भेद हैं -
- जरायुज - जन्म के समय प्राणियों के ऊपर जाल की तरह खून और माँस की जाली सी लिपटी रहती है, उसे जरायु कहते हैं और जरायु से उत्पन्न होने वाले जरायुज कहलाते हैं। जैसे - गाय, भैंस, मनुष्य, बकरी अादि ।
- अण्डज - जो नख की त्वचा के समान कठिन (कठोर) है, गोल है और जिसका आवरण शुक्र और शोणित से बना है, उसे अण्ड कहते हैं और जो अण्डों से पैदा होते हैं, वे अण्डज कहलाते हैं। जैसे कबूतर, चिड़िया, छिपकली और सर्प आदि।
- पोत - जो जीव जन्म लेते ही चलने-फिरने लगते हैं, उनके ऊपर कोई आवरण नहीं रहता है, उन्हें पोत कहते हैं। जैसे - हिरण, शेर आदि।
नोट - जरायुज में माँस की थैली में उत्पन्न होता है और अण्डज में अण्डे के भीतर उत्पन्न होकर बाहर निकलता है वैसे पोत में किसी आवरण से युक्त नहीं होता, इसलिए पोतज नहीं कहलाता है,पोत कहलाता है। (रावा, 3/33/1-5)
4. कौन से जीवों का कौन-सा जन्म होता है ?
देव और नारकियों का मनुष्यों और तिर्यञ्चों का 1, 2, 3, 4 इन्द्रियों का लब्धि अपर्याप्तक मनुष्य एवं तिर्यञ्चों का |
- उपपाद जन्म । - गर्भ जन्म और सम्मूच्र्छन जन्म। - सम्मूच्छन जन्म। - सम्मूच्छन जन्म। |
5. योनि किसे कहते हैं ?
जिसमें जीव जाकर उत्पन्न हो, उसका नाम योनि है।
6. योनि और जन्म में क्या भेद है ?
योनि आधार है और जन्म आधेय है।
7. योनि के मूल में कितने भेद हैं ?
योनि के मूल में 2 भेद हैं। गुण योनि और आकार योनि। गुण योनि के मूल में 9 भेद और उत्तर भेद 84 लाख हैं।
गुण योनि के 9 भेद इस प्रकार हैं :-
- सचित्त योनि - जो योनि जीव प्रदेशों से अधिष्ठित हो।
- अचित योनि - जो योनि जीव प्रदेशों से अधिष्ठित न हो।
- सचिताचित योनि - जो योनि कुछ भाग में जीव प्रदेशों से अधिष्ठित हो और कुछ भाग जीव प्रदेशों से अधिष्ठित न हो।
- शीत योनि - जिस योनि का स्पर्श शीत हो।
- उष्ण योनि - जिस योनि का स्पर्श उष्ण हो।
- शीतोष्ण योनि - जिस योनि का कुछ भाग शीत हो, कुछ भाग उष्ण हो।
- संवृत योनि - जो योनि ढकी हो।
- विवृत योनि - जो योनि खुली हो।
- संवृतविवृत योनि - जो योनि कुछ ढकी हो कुछ खुली हो।
8 . आकार योनि के कितने भेद हैं ?
आकार योनि के तीन भेद हैं -
- शंखावत - इसमें गर्भ रुकता नहीं है।
- कूर्मोन्नत - इसमें तीर्थंकर, चक्रवर्ती, अर्द्धचक्रवर्ती, बलदेव तथा साधारण मनुष्य भी उत्पन्न होते हैं।
- वंशपत्र - इसमें शेष सभी गर्भ जन्म वाले जीव जन्म लेते हैं।
9. कौन से जीव की कौन-सी योनि होती है ?
देव और नारकियों की अचित योनि होती है, क्योंकि उनके उपपाद देश के पुद्गल प्रचयरूप योनि अचित है। गर्भजों की मिश्र योनि होती है, क्योंकि उनकी माता के उदर में शुक्र और शोणित अचित होते हैं, जिनका सचित माता की आत्मा से मिश्रण है इसलिए वह मिश्रयोनि है। संमूच्छनों की तीन प्रकार की योनियाँ होती हैं। किन्हीं की सचित योनि होती है अन्य की अचित योनि होती है और दूसरों की मिश्र योनि होती है। साधारण शरीर वाले जीवों की सचित योनि होती है, क्योंकि ये एक-दूसरे के आश्रय से रहते हैं। इनसे अतिरिक्त शेष संमूच्छन जीवों के अचित और मिश्र दोनों प्रकार की योनियाँ होती हैं। देव हैं और कुछ उष्ण। अग्निकायिक जीवों की उष्ण योनि होती है। इनसे अतिरिक्त जीवों की योनियाँ तीनों प्रकार की होती हैं। देव, नारकी और एकेन्द्रियों की संवृत योनियाँ होती हैं। विकलेन्द्रियों की विवृत योनि होती है तथा गर्भजों की मिश्र योनियाँ होती हैं। (स.सि. 2/32/324)
सुविधा के लिए तालिका देखिए -
सचित्त योनि अचित योनि मिश्र योनि अचित और मिश्र योनि शीत और उष्ण योनि उष्ण योनि शीत, उष्ण और मिश्रयोनि संवृत योनि विवृत योनि मिश्र योनि |
साधारण शरीर देव,नारकी गर्भज शेष संमूच्छनों की देव,नारकी अग्निकायिक इनके अतिरिक्त देव, नारकी, एकेन्द्रिय विकलेन्द्रिय एवं शेष संमूच्छनों की गर्भजों की |
10. चौरासी लाख योनि कौन सी हैं ?
चौरासी लाख योनि निम्न हैं
1. नित्य निगोद 2. इतर निगोद 3. पृथ्वीकायिक 4. जलकायिक 5. अग्निकायिक 6. वायुकायिक 7. वनस्पतिकायिक 8. दो इन्द्रिय 9. तीन इन्द्रिय 10. चार इन्द्रिय 11. नारकी 12. तिर्यञ्च 13. देव 14. मनुष्य |
7 लाख 7 लाख 7 लारव 7 लाख 7 लाख 7 लारव 10 लाख 2 लाख 2 लाख 2 लाख 4 लाख 4 लाख 4 लाख 14 लाख कुल योग 84लाख |
11. कुल किसे कहते एवं उसके कितने भेद हैं ?
योनि को जाति भी कहते हैं और जाति के भेदों को कुल कहते हैं। कुल 1995 लाख कोटि होते हैं।
1 2 3 4 5 6 7 8 |
पृथ्वीकायिक जलकायिक अग्निकायिक वायुकायिक वनस्पतिकायिक दो इन्द्रिय तीन इन्द्रिय चार इन्द्रिय |
22 लाख कोटि 7 लाख कोटि 3 लाख कोटि 7 लाख कोटि 28 लाख कोटि 7 लाख कोटि 8 लाख कोटि 9 लाख कोटि |
9. पञ्चेन्द्रिय अ. जलचर ब. थलचर स. नभचर 10. नारकी 11. देव 12. मनुष्य |
तिर्यउचों में 12.5 लाख कोटि 19 लाख कोटि 12 लाख कोटि 25 लाख कोटि 26 लाख कोटि 14 लाख कोटि |
कुल योग 199.5 लाख कोटि |
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