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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 60 - नय

       (1 review)

    जिसे समझे बिना हम अध्यात्म का रहस्य नहीं समझ पाते, ऐसे नयों का वर्णन इस अध्याय में है।

     

    1. नय किसे कहते हैं ?

    सकलादेशः प्रमाणाधीनो विकलादेश: नयाधीन:'। सकलादेश प्रमाण का विषय है और विकलादेश नय का विषय है। (.सि., 1/6/24) अथवा ज्ञाता के अभिप्राय को नय कहते हैं। अथवा श्रुतज्ञान के विकल्प को नय कहते हैं। अथवा अनन्त धर्मात्मक पदार्थ के किसी एक धर्म को मुख्य और अन्य धर्मों को गौण करने वाले विचार को नय कहते हैं।

     

    2. नय के कितने भेद हैं ?

    नय के 7 भेद हैं- नैगमनय, संग्रहनय, व्यवहारनय, ऋजुसूत्रनय, शब्दनय, समभिरूढ़नय तथा एवंभूतनय।

     

    3. नैगमनय किसे कहते हैं ?

    अनिष्पन्न अर्थ में संकल्प मात्र को ग्रहण करने वाला नय नैगमनय है। जैसे-रसोई घर में अग्नि जलाते समय कहना मैं भोजन बना रहा हूँ। इसके तीन भेद हैं

    1. भूत नैगमनय - जहाँ पर भूतकाल का वर्तमान में आरोपण किया जाता है, उसे भूत नैगमनय कहते हैं जैसे-आज मुकुट सप्तमी को तीर्थङ्कर पाश्र्वनाथ मोक्ष गए।
    2. भावी नैगमनय - जहाँ पर वर्तमानकाल में भविष्य का आरोपण किया जाता है, वह भावी नैगमनय है। जैसे-अरिहंत भगवान् को सिद्ध कहना, राजकुमार को राजा कहना एवं ब्रह्मचारी जी को मुनि कहना।
    3. वर्तमान नैगमनय - जो कार्य करना प्रारम्भ कर दिया है, परन्तु अभी तक जो निष्पन्न नहीं हुआ है। कुछ निष्पन्न है, कुछ अनिष्पन्न है उस कार्य को हो गया ऐसा निष्पन्नवत् कथन करना वर्तमान नैगमनय है। जैसे -1. टेलर ने कपड़ा काटा थोड़ा सिला, कह दिया पूरा सिल गया है। 2. अधपके चावल को चावल पक गया ऐसा कहना।

     

    4. संग्रहनय किसे कहते हैं ?

    जो नय अपनी जाति का विरोध नहीं करके एकपने से समस्त पदार्थों को ग्रहण करता है, उसे संग्रहनय कहते हैं। जैसे-द्रव्य कहने से समस्त द्रव्य, जीव कहने से समस्त जीव, मुनि कहने से समस्त मुनि और व्यापारी कहने से समस्त व्यापारी। (.सि., 1/33/243)

     

    5. व्यवहारनय किसे कहते हैं ?

    संग्रहनय के द्वाराग्रहण किए हुए पदार्थों का विधिपूर्वक भेद करना व्यवहारनय है। जैसे-द्रव्य के : भेद करना। जीव के संसारी-मुक्त दो भेद करना।। (.सि., 1/33/244)

     

    6. ऋजुसूत्रनय किसे कहते हैं ?

    वर्तमानकाल को ग्रहण करने वाला ऋजुसूत्रनय है। इसके दो भेद हैं सूक्ष्मऋचुसूत्रनय-जोनय एकसमयवर्ती पर्याय को विषय करता है वह सूक्ष्मऋजुसूत्रनय है। जैसे-सर्व क्षणिक है (सं. नयचक्र, 18)

    स्थूलऋजुसूत्रनय - जी नय अनेक समयवर्ती स्थूल पर्याय को विषय करता है, वह स्थूलऋजुसूत्रनय है। जैसे- मनुष्य आदि पर्यायें अपनी-अपनी आयु प्रमाण काल तक रहती हैं। (आ.प.,75)

     

    7. शब्दनय किसे कहते हैं ?

    1. संख्या, लिंग,कारक आदि के व्यभिचार (दोष) को दूर करके शब्द के द्वारा पदार्थ को ग्रहण करना शब्दनय है। जैसे - आम्रा वन:, आमों के वृक्ष वन हैं। यहाँ आम्र शब्द बहुबचनांत है और वन शब्द एकवचनांत है। यद्यपि व्यवहार में ऐसे प्रयोग होते हैं। तथापि इस प्रकार के व्यवहार को शब्दनय अनुचित मानता है। (स.सि., 1/33/246)

    2. पर्यायवाची सभी शब्दों का एक ही अर्थ ग्रहण करता है, वह शब्दनय है। (रा.वा,4/42/17) जैसेनिग्रन्थ, श्रमण, मुनि आदि।

     

    8. समभिरूढ़नय किसे कहते हैं ?

    एक शब्द के अनेक अर्थ होने पर किसी प्रसिद्ध एक रूढ़ अर्थ को शब्द द्वारा कहना समभिरूढ़नय है। जैसे-गो शब्द के पृथ्वी, वाणी, किरण आदि अनेक अर्थ हैं, फिर भी गो शब्द से गाय को ग्रहण करना।। (स.सि.1/ 33/247)

     

    9. एवंभूतनय किसे कहते हैं ?

    जिस शब्द का जो वाच्य है, वह तद्रूप (उसी रूप) क्रिया से परिणत समय में ही जब पाया जाता है, उसे जो विषय करता है, उसे एवंभूतनय कहते हैं। जैसे- पूजा करते हुए को पुजारी कहना। राज्य करते समय राजा कहना। दीक्षा, प्रायश्चित देते समय आचार्यकहना, पढ़ाते समय शिक्षक कहना आदि। (स.सि., 1/33/248)

     

    10. नौ नय कौन-कौन से होते हैं ?

    इन सातनयों में द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिकनयमिला देने से नौनय हो जाते हैं। (आ.पा.,41)

     

    11. द्रव्यार्थिकनय किसे कहते हैं ?

    द्रव्य अर्थात्सामान्यको विषय बनाने वाला नय। (आ.प., 185)

     

    12. पर्यायार्थिकनय किसे कहते हैं ?

    पर्याय अर्थात् विशेष को विषय बनाने वाला नय। (आ.प, 191)जैसे-नदी की तरफ सामान्य दृष्टि डालने पर जल के रंग, गंध और स्वाद की ओर ध्यान न जाकर केवल जल की ओर ध्यान जाना। यह द्रव्यार्थिकनय का दृष्टान्त है। किन्तु जब जल के रंग, गंध और स्वाद की ओर ध्यान जाता है तब वह पर्यायार्थिकनय का दृष्टान्त है।

     

    13. उपरोक्त कहे गए सात नयों में कितने नय द्रव्यार्थिकनय एवं कितने नय पर्यायार्थिकनय हैं ?

    आदि के तीन नय अर्थात् नैगमनय, संग्रहनय एवं व्यवहारनय, द्रव्यार्थिकनय हैं एवं शेष चार नय अर्थात् ऋजुसूत्रनय, शब्दनय, समभिरूढ़नय एवं एवंभूतनय पर्यायार्थिकनय हैं।

     

    14. इन सात नयों का विषय उत्तरोत्तर सूक्ष्म-सूक्ष्म है, इसके लिए उदाहरण दीजिए ?

    1. किसी मनुष्य को पापी लोगों का समागम करते हुए देखकर नैगमनय से कहा जाता है कि यह पुरुष नारकी है।

    2. जब वह मनुष्य प्राणीवध करने का विचार कर सामग्री संग्रह करता है, तब वह संग्रहनय से नारकी कहा जाता है।

    3. जब कोई मनुष्य हाथ में धनुष और बाण लेकर मृगों की खोज में भटकता-फिरता है, तब उसे व्यवहारनय से नारकी कहा जाता है। 4. जब आखेट स्थान पर बैठकर पापी मृगों पर आघात करता है तब वह ऋजुसूत्रनय से नारकी कहा जाता है।

    5. जब जीव प्राणों से विमुक्त कर दिया जाता है, तभी वह आघात करने वाला हिंसा कर्म से संयुक्त पापी शब्दनय से नारकी कहा जाता है।

    6. जब मनुष्य नारक (गति व आयु) कर्म का बंधक होकर नारक कर्म से संयुक्त हो जाए तभी वह समभिरूढ़नय से नारकी कहा जाता है।

    7. जब वही मनुष्य नरकगति को पहुँचकर नरक के दुख अनुभव करने लगता है, तभी वह एवंभूतनय से नारकी कहा जाता है।

    अध्यात्म नय

    15. अध्यात्म पद्धति से नयों के मूल में कितने भेद हैं ?

    अध्यात्म पद्धति से नयों के मूल में दो भेद हैं

    1. निश्चयनय - गुण-गुणी में तथा पर्याय-पर्यायी आदि में भेद न करके अभेद रूप से वस्तु को ग्रहण करने वाला नय निश्चयनय कहलाता है।
    2. व्यवहारनय - गुण-गुणी में, पर्याय-पर्यायी में भेद करके वस्तु को ग्रहण करने वाला नय व्यवहारनय कहलाता है। (आ.प., 216)

     

    16. निश्चयनय के कितने भेद हैं ?

    निश्चयनय के दो भेद हैं -शुद्धनिश्चयनय एवं अशुद्धनिश्चयनय। (आ.प,217)

     

    17. शुद्ध निश्चयनय किसे कहते हैं ?

    जो नय कर्मजनित विकार से रहित गुण और गुणी को अभेद रूप से ग्रहण करता है, वह शुद्ध निश्चयनय है। जैसे-जीव केवलज्ञानमयी है। शुद्ध निश्चयनय की अपेक्षा जीव के न बंध है, न मोक्ष है और न गुणस्थान आदि हैं। (आ.प., 218)

     

    18. अशुद्ध निश्चयनय किसे कहते हैं ?

    जो नय कर्मजनित विकार सहित गुण और गुणी को अभेद रूप से ग्रहण करता है, वह अशुद्ध निश्चय नय है। जैसे-आत्मा सम्पूर्ण मोह राग-द्वेष रूप भाव कर्मों का कर्ता और भोता है। (आ.प, 202)

     

    19. व्यवहारनय के कितने भेद हैं ?

    व्यवहारनय के दो भेद हैं-सद्भूत व्यवहारनय एवं असद्भूत व्यवहारनय। (आ.प.,220)

     

    20. सद्भूत व्यवहारनय किसे कहते हैं ?

    एक वस्तु में गुण-गुणी का संज्ञादि की अपेक्षा भेद करना सद्भूत व्यवहारनय का विषय है। जैसे-जीव के ज्ञान, दर्शनादि ।

     

    21. सद्भूत व्यवहारनय के कितने भेद हैं ?

    सद्भूत व्यवहारनय के दो भेद हैं

    1. उपचरित सद्भूत व्यवहारनय - कर्मजनित विकार सहित गुण-गुणी के भेद को ग्रहण करने वाला नय उपचरित सद्भूत व्यवहारनय कहलाता है। जैसे-जीव के मतिज्ञान आदि गुण। (आ.प,224)

    2. अनुपचरित सद्भूत व्यवहारनय - कर्म जनित विकार रहित जीव में गुण-गुणी के भेद रूप विषय को ग्रहण करने वाला नय अनुपचरित सद्भूत व्यवहारनय कहलाता है। जैसे-जीव के केवलज्ञानादि गुण। (आ.प., 225)

     

    22. असद्भूत व्यवहारनय किसे कहते हैं ?

    भिन्न वस्तु को ग्रहण करने वाला असद्भूत व्यवहारनय हैं। जैसे-जीव का शरीर, मकान आदि। (आ.प,222)

     

    23 .असद्भूत व्यवहारनय के कितने भेद हैं ?

    असद्भूत व्यवहारनय के दो भेद हैं

    1. उपचरित असद्भूत व्यवहारनय - संश्लेष सम्बन्ध रहित ऐसी भिन्न-भिन्न वस्तुओं का परस्पर में सम्बन्ध ग्रहण करना उपचरित असद्भूत व्यवहारनय है। जैसे-देवदत्त का धन, राम का महल, रावण की लंका आदि। (आ.प., 227)
    2. अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय - संश्लेष सहित वस्तु के सम्बन्ध को विषय करने वाला असद्भूत व्यवहारनय है। जैसे-जीव का शरीर कहना। (आ.प, 228)

     

    24. उपचरित असद्भूत व्यवहारनय के कितने भेद हैं ?

    उपचरित असद्भूत व्यवहारनय के तीन भेद हैं -

    1. स्वजातीय उपचरित असद्भूत व्यवहारनय।

    2. विजातीय उपचरित असद्भूत व्यवहारनय।

    3. स्वजातीय विजातीय उपचरित असद्भूतव्यवहारनय ।। (आ.प.,88)

     

    25. स्वजातीय उपचरित असद्भूत व्यवहारनय किसे कहते हैं ?

    जो नय उपचार से स्वजातीय द्रव्य का स्वजातीय द्रव्य को स्वामी बतलाता है. वह स्वजातीय उपचरित असद्भूत व्यवहार नय है। जैसे -शिष्य, पुत्र, पुत्री, स्त्री आदि मेरे हैं। (आ.प., 89)

     

    26. विजातीय उपचरित असद्भूत व्यवहारनय किसे कहते हैं ?

    सोना, चाँदी,वस्त्र , पिच्छी, कमडलु आदि मेरे है, ऐसा कहना विजातीय उपचरित असद्भूत व्यवहारनय है |

     

    27. स्वजातीय-विजातीय उपचरित असद्भत व्यवहारनय किसे कहते हैं ?

    देश, राज्य, दुर्ग ये सब मेरे हैं, ऐसा जो नय कहता है वह स्वजातीय-विजातीय उपचरित असद्भूत व्यवहार नय है। क्योंकि देश, राज्य आदि में सचेतन-अचेतन दोनों पदार्थ रहते हैं। (आ.प., 91)

     

    28. नयाभास किसे कहते हैं ?

    जो किसी एक धर्म का ही अस्तित्व स्वीकार करता है और शेष समस्त धर्मों का निराकरण करता है, वह नयाभास कहलाता है। नयाभास, दुर्नय, निरपेक्षनय, मिथ्यानय ये सभी एकार्थवाची शब्द हैं।

     

    अध्यात्मनय के लिए निम्नलिखित सारणी प्रस्तुत है

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