समुद्धात किसे कहते हैं कितने होते हैं,किस गति एवं किस गुणस्थान में कितने होते हैं। इसका वर्णन इस अध्याय में है|
1. समुद्धात किसे कहते हैं ?
अपने मूल शरीर को न छोड़कर, तैजस और कार्मण शरीर के प्रदेशों सहित, आत्मा के प्रदेशों का शरीर के बाहर निकलना समुद्धात कहलाता है। (द्र.सं.टी., 10) जैसे - Current Power House से आता है, तो वह Power House मूल शरीर है। उसे छोड़े बिना Current आपके घर तक आता है, इसे समुद्धात कहते हैं।
2. समुद्धात कितने प्रकार के होते हैं ?
समुद्धात सात प्रकार के होते हैं -1. वेदना समुद्धात, 2. कषाय समुद्धात, 3. विक्रिया समुद्धात, 4. मारणान्तिक समुद्धात, 5. तैजस समुद्धात, 6. आहारक समुद्धात, 7. केवली समुद्धात। (द्र.सं.टी.,10)
3. वेदना समुद्धात किसे कहते हैं ?
वात,पितादि विकार जनित रोग या विषपान आदि की तीव्रवेदना से मूल शरीर को छोड़े बिना आत्म प्रदेशों का बाहर निकलना वेदना समुद्धात है। (रावा, 1/20/12)
4. वेदना समुद्धात में आत्म प्रदेश कितनी दूर तक फैलते हैं ?
वेदना के वश से जीव प्रदेशों के विष्कम्भ (चौड़ाई)और उत्सेध (ऊँचाई) की अपेक्षा तिगुने प्रमाण में फैलते हैं, किन्तु तिगुने ही फैलें ऐसा नियम नहीं है, एक दो प्रदेश से भी वृद्धि होती है। (धपु, 11/18)
5. क्या वेदना समुद्धात सभी को होता है ?
नहीं। निगोदिया जीवों में अतिशय वेदना का अभाव होने से विवक्षित शरीर से तिगुना वेदना समुद्धात संभव नहीं है। (धपु, 11/21)
6. कषाय समुद्धात किसे कहते हैं ?
कषाय की तीव्रता से आत्म प्रदेशों का अपने शरीर से तिगुने प्रमाण फैलने को कषाय समुद्धात कहते हैं। जैसे-संग्राम में योद्धा लोग क्रोध में आकर लाल-लाल आँखें करके अपने शत्रुओं को देखते हैं, यह प्रत्यक्ष देखा जाता है। यही समुद्धात का रूप है। (का.अ.टी., 176/115)
7. क्या कषाय समुद्धात में पर का घात हो जाता है ?
इसका नियम नहीं है।
8. विक्रिया समुद्धात किसे कहते हैं ?
शरीर या शरीर के अङ्ग बढ़ाने के लिए अथवा अन्य शरीर बनाने के लिए आत्मप्रदेशों का मूल शरीर को न छोड़कर बाहर निकल जाना विक्रिया समुद्धात है। विक्रिया समुद्धात देव व नारकियों के तो होता ही है, किन्तु विक्रियात्रद्धिधारी मुनीश्वरों के तथा भोगभूमियाँ जीव अथवा चक्रवर्ती आदि के भी विक्रिया समुद्धात होता है। तिर्यच्चों में भी विक्रिया समुद्धात होता है। (रावा, 2/47/4) अग्निकायिक, वायुकायिक जीवों में भी विक्रिया समुद्धात होता है। (गो.जी., 234)
9. विक्रिया समुद्धात में आत्म प्रदेश कहाँ तक फैल जाते हैं ?
जिसका जितना विक्रिया क्षेत्र है और उसमें भी जितनी दूर तक विक्रिया की जा रही है, उतनी दूर तक आत्म प्रदेश फैल जाते हैं।
10. मारणान्तिक समुद्धात किसे कहते हैं ?
मरण के अन्तर्मुहूर्त पहले, मूल शरीर को न छोड़कर, जहाँ उत्पन्न होना है, उस क्षेत्र का स्पर्श करने के लिए आत्म प्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना मारणान्तिक समुद्धात है। (द्र.सं. टी., 10) जैसे- सर्विस करने वालों का ट्रांसफर हो गया है तो जहाँ जाना है वहाँ पहले जाकर मकान, आफिस आदि देखकर वापस आ जाते हैं, फिर परिवार सहित सामान लेकर चले जाते हैं।
11. तैजस समुद्धात किसे कहते हैं ?
संयमी महामुनि के विशिष्ट दया उत्पन्न होने पर अथवा तीव्र क्रोध उत्पन्न होने पर उनके दाएँ अथवा बाएँ कंधे से तैजस शरीर का एक पुतला निकलता है, उसके साथ आत्मप्रदेशों का बाहर निकलना तैजस समुद्धात कहलाता है। (द्र.सं. टी., 10)
12. तैजस समुद्धात कितने प्रकार का होता है ?
तैजस समुद्धात दो प्रकार का होता है - शुभ तैजस समुद्धात एवं अशुभ तैजस समुद्धात।
13. शुभ तैजस समुद्धात कब और किसके होता है ?
जगत् को रोग दुर्भिक्ष आदि से दुखित देखकर जिनको दया उत्पन्न हुई है, ऐसे महामुनि के मूल शरीर को न छोड़कर दाहिने कंधे से सौम्य आकार वाला सफेद रंग का एक पुतला निकलता है, जो 12 योजन में फैले हुए दुर्भिक्ष, रोग आदि को दूर करके वापस आ जाता है। (द्र.सं. टी., 10)
14. अशुभ तैजस समुद्धात कब और किसके होता है ?
तपोनिधान महामुनि के क्रोध उत्पन्न होने पर मन में विचार की हुई विरुद्ध वस्तु को भस्म करके और फिर उस ही संयमी मुनि को भस्म करके नष्ट हो जाता है। यह मुनि के बाएँ कंधे से सिंदूर की तरह लाल रंग का बिलाव के आकार का, बारह योजन लंबा, सूच्यंगुल के संख्यात भाग प्रमाण मूल विस्तार और नौ योजन चौड़ा रहता है। (द्र.सं. टी., 10)
15. क्या, दोनों तैजस समुद्धात में और कोई विशेषता है ?
दोनों छठवें गुणस्थानवर्ती मुनि के होते है एवं इनके साथ उपशम सम्यग्दर्शन, आहारकद्विक एवं परिहारविशुद्धि संयम नहीं होता है। (धपु,4/123 एवं 4/135) तथा गुरु उपदेश के अनुसार यह भाव पुरुष वेद वाले को ही होता है।
16. दोनों समुद्धात में क्या अंतर है ?
विषय |
अशुभ |
शुभ |
वर्ण |
सिंदूर के समान लाल रंग |
सफेद रंग |
शक्ति |
12 योजन तक सब कुछ नष्ट कर देता है। |
12 योजन तक दुर्भिक्ष, रोग आदि नष्ट कर देता है |
उत्पत्ति |
बाएँ कंधे से |
दाएँ कंधे से |
विसर्पण |
इच्छित क्षेत्र प्रमाण अथवा 12 योजन तक |
अप्रशस्तवत् |
निमित्त |
प्राणियों के प्रति रोष |
प्राणियों के प्रति अनुकंपा |
आकार |
बिलाव के आकार का |
सौम्य आकार का |
17. आहारक समुद्धात किसे कहते हैं ?
आहारक ऋद्धि वाले मुनि को जब तत्व सम्बन्धी तीव्र जिज्ञासा होती है, तब उस जिज्ञासा के समाधान के लिए उनके मस्तक से एक हाथ ऊँचा सफेद रंग का पुतला निकलता है, जो केवली, श्रुतकेवली के पादमूल में जाकर, विनय से पूछकर अपनी जिज्ञासा शांतकर मूल शरीर में प्रविष्ट हो जाता है। यह तीर्थवंदना आदि के लिए भी जाता है। (का.अ.टी., 176/111)
यह समुद्धात भाव पुरुषवेद वाले प्रमत्त संयत नामक छठवें गुणस्थानवर्ती मुनि को होता है। इसके साथ उपशम सम्यग्दर्शन, मन:पर्ययज्ञान एवं परिहार विशुद्धि संयम का निषेध है।
18. केवली समुद्धात किसे कहते हैं ?
जब केवली भगवान् की आयु अन्तर्मुहूर्त शेष रहती है एवं शेष 3 अघातिया कर्मों की स्थिति अधिक हो तब आयु कर्म के बराबर स्थिति करने के लिए आत्मप्रदेशों का दण्ड, कपाट, प्रतर और लोकपूरण के माध्यम से बाहर निकलना होता है, उसे केवली समुद्धात कहते हैं। (का.अ., 176) जैसे-गीली धोती (पंचा)फैला देने से जल्दी सूख जाती है एवं बिना फैलाए जल्दी नहीं सूखती है। वैसे ही आत्मप्रदेश फैलाने से कर्म कम स्थिति वाला हो जाता है, बिना फैलाए उनकी स्थिति घटती नहीं है।
19. केवली समुद्धात का क्या स्वरूप है ?
केवली समुद्धात चार प्रकार से होता है
- दण्ड समुद्धात - सयोग केवली यदि आसीन हो तो शरीर से तिगुने विस्तार फैलते हैं, खड्गासन में स्थित हो तो शरीर विस्तार चौड़े आत्म प्रदेश निकलते हैं एवं ऊपर से नीचे तक वातवलयों के प्रमाण से कम 14 राजू लंबे फैल जाते हैं।
- कपाट समुद्धात - कपाट का अर्थ दरवाजा है, जैसे-दरवाजा आजू-बाजू खुलता है वैसे ही इसमें आत्म प्रदेश आजू-बाजू में फैलते हैं। यदि केवली भगवान् पूर्वाभिमुख हों तो ऊपर, मध्य में एवं नीचे सर्वत्र वातवलय को छोड़कर 7-7 राजू प्रमाण आत्म प्रदेश फैलते हैं और यदि भगवान् उत्तराभिमुख हो तो वातवलय को छोड़कर ऊपर तो एक राजू, ब्रह्मलोक में 5 राजू, मध्य लोक में एक राजू व नीचे 7 राजू प्रमाण चौड़े हो जाते हैं।
- प्रतरसमुद्धात - इस समुद्धात में सामने व पीछे जितना क्षेत्र शेष बचा है, उसमें वातवलय को छोड़कर सबमें फैल जाते हैं।
- लोकपूरण समुद्धात - इस समुद्धात में आत्मप्रदेश वातवलय के क्षेत्र में भी फैल जाते हैं, अर्थात् सम्पूर्ण लोक में फैल जाते हैं।
20. लोकपूरण समुद्धात के बाद प्रवेश विधि किस प्रकार से है ?
लोकपूरण के बाद वापस प्रतर में, प्रतर से वापस कपाट में, कपाट से वापस दण्ड में और दण्ड से वापस मूल शरीर में प्रवेश करता है।
21. समुद्धातों में कितना समय लगता है ?
केवली समुद्धात में आठ समय और शेष सभी समुद्धातों में अन्तर्मुहूर्त लगता है।
22. केवली समुद्धात में आठ समय कैसे लगते हैं ?
दण्ड में एक समय, कपाट में एक समय, प्रतर में एक समय और लोकपूरण में एक समय इसके बाद वापस होते समय प्रतर में एक समय, कपाट में एक समय, दण्ड में एक समय और मूल शरीर में प्रवेश करते समय का एक समय इस प्रकार कुल आठ समय लगते हैं।
23. दण्ड, कपाट, प्रतर और लोकपूरण समुद्धात में कौन-सा योग रहता है ?
दण्ड में औदारिक काययोग, कपाट में औदारिकमिश्रकाय योग, प्रतर एवं लोकपूरण समुद्धात में कार्मण काययोग रहता है।
24. क्या, सभी केवली समुद्धात करते हैं ?
मोक्ष जाने वाले सभी जीवों के केवली समुद्धात नहीं होता किन्तु जिन केवलियों के आयु कर्म के अलावा शेष तीन कर्मों की स्थिति, आयु कर्म से अधिक होती है, उन केवलियों के तीन कर्मों की स्थिति आयु कर्म के बराबर करने के लिए होता है। (ध.पु. 1/304)
25. ये समुद्धात किस दिशा में होते हैं ?
आहारक और मारणान्तिक समुद्धात में आत्मप्रदेश एक ही दिशा में गमन करते हैं किन्तु शेष पाँच समुद्धात, दसों दिशाओं में गमन करते हैं।
26. किस गति में कितने समुद्धात होते हैं ?
नरकगति |
वेदना, कषाय, विक्रिया और मारणान्तिक समुद्धत। |
तिर्यञ्चगति |
वेदना, कषाय, विक्रिया (रावा, 2/47/4) और मारणान्तिक समुद्धात। |
मनुष्यगति |
सभी। |
देवगति |
वेदना, कषाय, विक्रिया और मारणान्तिक समुद्धत। |
27. कौन-सा समुद्धात कौन से गुणस्थानों में होता है ?
कषाय, वेदना और वैक्रियिक समुद्धात 1-6 गुणस्थान तक होता है। मारणान्तिक समुद्धात 1-11 गुणस्थान तक होता है (तीसरे गुणस्थान को छोड़कर) । आहारक और तैजस समुद्धात 6 वें गुणस्थान में होता है तथा केवली समुद्धात 13 वें गुणस्थान के अन्तिम अन्तर्मुहूर्त में होता है।
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