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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 39 - अभक्ष्य पदार्थ

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    मानव जीवन बिना भोजन के नहीं चलता। अत: भोजन करना अनिवाय है, किन्तु जो भोजन धार्मिक एवं शारीरिक दूष्टि से ठीक नहीं है ऐसा अभक्ष्य भोजन कदापि नहीं करना चाहिए। उसी अभक्ष्य भोजन के बारे में  इस अध्याय में उसका वर्णन है।

     

    1. अभक्ष्य किसे कहते हैं ? 
    जो पदार्थ खाने (भक्षण करने) योग्य नहीं होता, उसे अभक्ष्य कहते हैं। 

     

    2. अभक्ष्य कितने प्रकार के होते हैं ? 
    अभक्ष्य 5 प्रकार के होते हैं। त्रसघातकारक, प्रमादवर्धक, बहुघातकारक, अनिष्टकारक और अनुपसेव्य। 

    1. त्रसघात कारक - जिस पदार्थ के खाने से त्रसजीवों का घात हो। जैसे-बड़, पीपल, पाकर, ऊमर, कटूमर,माँस, मधु, अमर्यादित भोजन और घुना अन्न आदि।
    2. प्रमादवर्धक - जिस पदार्थ के खाने-पीने से प्रमाद और आलस्य आता है। जैसे-शराब, गाँजा, भाँग पदार्थ। नोट- बीयर आदि भी शराब हैं। 
    3. बहुघातकारक - जिसमें फल तो अल्प हो और बहुत त्रसजीवों का घात हो। जैसे-गीला अदरक,मूली, नीम के फूल, केवड़े के फूल, मक्खन एवं समस्त जमीकंद आदि। 
    4. अनिष्टकारक - जो आपकी प्रकृति-विरुद्ध हैं। जैसे-खाँसी में दही का सेवन, बुखार में घी का सेवन, हृदय रोग में घी और तेल का सेवन, डायबिटीज में शक्कर का सेवन, मोतीझिरा बुखार में अन्न का सेवन और ब्लडप्रेशर बढ़ने पर नमक का सेवन करना आदि अनिष्टकारक हैं। 
    5. अनुपसेव्य - जो सजन पुरुषों के सेवन करने योग्य नहीं हैं। जैसे-गोमूत्र, ऊँटनी का दूध, शंकचूर्ण, पान का उगाल, लार, मूत्र, पुरीष और खकार आदि।

     

    3. द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव अभक्ष्य किसे कहते हैं ? 

    1. द्रव्य - जैसे-किसी ने प्रासुक भोजन बनाया और उस भोजन को कुत्ता, बिल्ली आदि ने जूठा कर दिया तो वह अभक्ष्य हो गया या उसमें कोई अशुद्ध पदार्थ गिर गया। 
    2. क्षेत्र - अपवित्र स्थान पर बैठकर भोजन करना क्षेत्र अभक्ष्य है। 
    3. काल - काल की अपेक्षा तो स्पष्ट है मर्यादा के बाद वह पदार्थ अभक्ष्य है। लीस्टर देश में 8 घंटे के बाद मिठाई फेंक देते हैं।
    4. भाव - भोजन करते समय यह भोज्य वस्तु माँस, रुधिर और मदिरा के सदृश है, ऐसा स्मरण होते ही वह भोजन भाव अभक्ष्य है। 

     

    4. चलित रस अभक्ष्य किसे कहते हैं ?
     जो पदार्थ स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण से चलायमान हो गए हैं, ऐसे पदार्थों को भी नहीं खाना चाहिए, क्योंकि ऐसे पदार्थों में अनेक त्रस जीवों की और अनन्त निगोद राशि की उत्पत्ति अवश्य हो जाती है। (प्लाटी संहिता, 56)

     

    5. पञ्च उदुम्बरों के त्यागी को क्या-क्या त्याग कर देना चाहिए ? 
    जिसने पञ्च उदुम्बरों का त्याग किया है, उसे समस्त प्रकार के अज्ञात (अजान) फलों का त्याग कर देना चाहिए।' अजान फलों (वस्तुओं) के खाने से पूर्व में अनेक व्यक्तियों के मरण हो चुके हैं। 


    6. दही भक्ष्य है या अभक्ष्य ? 
    दही भक्ष्य है। जो दही इस विधि से तैयार किया है, वह भक्ष्य है-दूध दुहने के प्रथम समय से लेकर अन्तर्मुहूर्त के अंदर उबाल लिया है, ऐसे दूध में 24 घंटे के अन्दर चाँदी का सिक्का, बादाम, खड़ी लाल-मिर्च, अमचूर आदि डालकर दही जमाया जाता है, ऐसे दही में बैक्टेरिया नहीं होते हैं, यह दही भक्ष्य है।

     

    7. नवनीत (मक्खन) भक्ष्य है या अभक्ष्य ?
     मद्य, माँस, मधु एवं नवनीत को महाविकृति कहा है। अत: यह अभक्ष्य है। नवनीत की मर्यादा अन्तर्मुहूर्त एवं पंडित आशाधरजी ने दो मुहूर्त कहा है। वह घी बनाने के उद्देश्य से कहा है, खाने के उद्देश्य से नहीं।'

     

    8. अष्टपाहुड की टीका करने वाले आचार्य श्रुतसागरजी सूरि ने चारित्रपाहुड की टीका 21 में द्विदल अभक्ष्य किसे कहा है ? 
    द्विदलान मिश्र दधितक्र स्वादितं सम्यक्त्वमपि मलिनयेत्-द्विदलान के साथ मिलाकर खाए हुए दही और तक्र (छाछ) सम्यक् दर्शन को भी मलिन कर देता है, अत: इनका त्याग कर देना चाहिए। 


    9. अभक्ष्य इतने ही हैं कि और भी हैं ? 
    वर्तमान में विवाह और जन्मदिन आदि की पार्टियों में दाल बाफले, तंदूरी, छोले-भटूरे आदि चलते हैं, इनमें दही मिलाया जाता है, अत: द्विदल है तथा बाजार में मिलने वाले पदार्थों में बहुत से पदार्थ अभक्ष्य हैं। जैसे-बन्द डिब्बों की आइसक्रीम, जिलेटिन, चाँदी का वर्क, अजीनोमोटो, साबूदाना, नींबू का सत्व (टाटरी) और मैगी आदि।

    Edited by admin


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