महिलाओं में सर्वोच्च पद आर्यिका का होता है, इनकी चर्या किस प्रकार की होती है। इसका वर्णन इस अध्याय में है।
1. आर्यिका किसे कहते हैं एवं इनकी चर्या किस प्रकार होती है ?
स्त्री पर्याय की अपेक्षा उत्कृष्ट संयमधारी स्त्रियाँ आर्यिका कहलाती हैं। ये मुनियों के समान दिगम्बरत्व को धारण नहीं कर सकती हैं, अत: एक 16 हाथ की सफेद साड़ी पहनती हैं तथा बैठ कर ही कर पात्र में आहार करती हैं। शेष चर्या मुनियों के समान है। आर्यिकाओं के लिए वृक्षमूल, आतापन योग, अभ्रावकाश आदि विशेष योग निषिद्ध हैं। आर्यिकाओं को उपचार से महाव्रती कहा गया है। ये पञ्चम गुणस्थानवर्ती होती हैं। इनका पद एलक और क्षुल्लक से श्रेष्ठ है। श्रावक इन्हें वंदामि कहकर नमस्कार करते हैं। आर्यिकाएँ भी परस्पर में समाचार वंदामि कहकर करती हैं। इनकी वसतिका श्रावकों से, न अति दूर न अति पास रहती है। वसतिका में ये आर्यिकाएँ दो-तीन अथवा तीस - चालीस पर्यन्त भी एक साथ रहती हैं। मुनियों की वंदना एवं आहार आदि क्रियाओं में गणिनी या प्रमुख आर्यिका के साथ या उनसे पूछकर कुछ आर्यिकाओं के साथ जाती हैं।
2. आर्यिका पद के अयोग्य कौन-कौन से कार्य आर्यिकाएँ नहीं करती हैं ?
आर्यिका पद के अयोग्य रोना, नहलाना, खिलाना, भोजन बनाना, सिलाई - कढ़ाई करना, स्वेटर बुनना आदि गृहस्थों के योग्य कार्यों को आर्यिकाएँ नहीं करती हैं।
3. आर्यिकाएँ कौन-कौन से कार्य करती हैं ?
स्वाध्याय करने में, पाठ याद करने में और अनुप्रेक्षा के चिन्तन में तथा तप में और संयम में नित्य ही उद्यत रहती हुई ज्ञानाभ्यास में तत्पर रहती हैं।
4. आर्यिकाएँ एवं महिलाएं कितनी दूर से आचार्य, उपाध्याय एवं साधुपरमेष्ठी को नमस्कार करती है ?
आचार्य परमेष्ठी को पाँच हाथ दूर से, उपाध्याय परमेष्ठी को छ: हाथ दूर से एवं साधु परमेष्ठी को सात हाथ दूर से नमस्कार करती हैं।
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