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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 24 - आचार्य परमेष्ठी

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    रत्नत्रय प्रदाता आचार्य परमेष्ठी के कितने मूलगुण होते हैं, हृसका वर्णन द्वस अध्याय में है।

    1. आचार्य परमेष्ठी किसे कहते हैं ? 
    जो पञ्चाचार का स्वयं पालन करते हैं एवं दूसरे साधुओं से पालन कराते हैं, उन्हें आचार्य परमेष्ठी कहते हैं। ये संघ के नायक होते हैं और शिष्यों को दीक्षा एवं प्रायश्चित देते हैं।

     
    2. आचार्य परमेष्ठी के कितने मूलगुण होते हैं ? 
    आचार्य परमेष्ठी के 36 मूलगुण होते हैं। 12 तप, 10 धर्म, 5 आचार, 6 आवश्यक एवं 3 गुप्ति। 


    3. तप किसे कहते हैं ? 
    "कर्मक्षयार्थ तप्यत इति तप:" कर्मक्षय के लिए जो तपा जाता है, वह तप है। तप के मूल में दो भेद हैं - बाह्य तप और आभ्यंतर तप।


    4. बाह्य तप और आभ्यंतर तप किसे कहते हैं ? 
    बाह्य तप - बाह्य द्रव्य के आलम्बन से होता है और दूसरों के देखने में आता है, इसलिए इनको बाह्य तप कहते हैं। 
    आभ्यंतर तप - आभ्यंतर तप (अतरंग तप) प्रायश्चित्तादि तपों में बाह्य द्रव्य की अपेक्षा नहीं रहती है। अंतरंग परिणामों की मुख्यता रहती है तथा इनका स्वयं ही संवेदन होता है। ये देखने में नहीं आते तथा इसको अनाहत (अजैन) लोग धारण नहीं कर सकते। इसलिए प्रायश्चित्तादि को अतरंग तप माना है।

     
    5. बाह्य तप कितने होते हैं ? 
    बाह्य तप छ: होते हैं - अनशन, अवमौदर्य, वृतिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विवितशय्यासन एवं कायक्लेश। 


    6. अनशन तप किसे कहते हैं ? 
    अशन का अर्थ है - आहार और अनशन का अर्थ है, चारों प्रकार के आहार का त्याग यह एक दिन को आदि लेकर बहुत दिन तक के लिए किया जाता है।


    7. अनशन तप क्यों किया जाता है ? 
    प्राणि संयम व इन्द्रिय संयम की सिद्धि के लिए एवं कर्मों की निर्जरा के लिए अनशन तप किया जाता है। 


    8. अवमौदर्य (ऊनोदर) तप किसे कहते हैं ? 
    भूख से कम खाना अवमौदर्य नामक तप है। पुरुष का स्वाभाविक आहार 32 ग्रास है उसमें से एक ग्रास को आदि लेकर कम करके लेना अवमौदर्य तप है। 1000 चावल का 1 ग्रास माना गया है। महिलाओं का स्वाभाविक आहार 28 ग्रास है। यह उत्तम, मध्यम और जघन्य, तीन प्रकार का होता है।

     
    9. अवमौदर्य तप क्यों किया जाता है ? 
    अवमौदर्य तप संयम को जागृत रखने, दोषों को प्रशम करने, संतोष और स्वाध्याय आदि की सुख पूर्वक सिद्धि के लिए किया जाता है।


    10. वृतिपरिसंख्यान तप किसे कहते हैं ?
    जब मुनि आहार के लिए जाते हैं तब मन में संकल्प लेकर जाते हैं, जिसे आप लोग विधि कहते हैं। जैसे एक कलश, दो कलश से पड़गाहन होगा तो जाएंगे नहीं तो नहीं। एक मुहल्ला, दो मुहल्ला तक ही जाऊंगा | यहे व्रतिपरिसंख्यान तप है |  ऐसा करे ही, नियम नहीं है | रोज (प्रतिदिन) करे यहे भी नियम नहीं है | 


    11. वृत्तिपरिसंख्यान तप क्यों किया जाता है ? 
    वृत्तिपरिसंख्यान तप आशा की निवृत्ति के लिए, अपने पुण्य की परीक्षा के लिए एवं कर्मों की निर्जरा के लिए किया जाता है। 


    12. रस परित्याग तप किसे कहते हैं ? 
    घी, दूध, दही, शक्कर, नमक, तेल, इन छ: रसों में से एक या सभी रसों का त्याग करना रस परित्याग तप है। अथवा वनस्पति, दाल, बादाम, पिस्ता आदि का त्याग करना भी रस परित्याग तप है। 


    13. रस परित्याग तप क्यों किया जाता है ? 
    रस परित्याग तप रसना इन्द्रिय को जीतने के लिए निद्रा वप्रमाद को जीतने के लिए, स्वाध्याय की सिद्धि के लिए एवं कर्मो की निर्जरा के लिए किया जाता है।

     

    14. विवित्तशय्यासन तप किसे कहते हैं ? 
    स्वाध्याय, ध्यान आदि की सिद्धि के लिए एकान्त स्थान पर शयन करना, आसन लगाना, विवितशय्यासन तप है। 


    15. विवित्तशय्यासन तप क्यों किया जाता है ? 
    विवितशय्यासन तप चित्त की शांति के लिए, निद्रा को जीतने के लिए एवं कर्मों की निर्जरा के लिए किया जाता है। 


    16. कायक्लेश तप किसे कहते हैं ? 
    शरीर को सुख मिले ऐसी भावना को त्यागना कायक्लेश तप है। अथवा वर्षाऋतु में वृक्ष के नीचे, ग्रीष्म ऋतु में धूप में बैठकर तथा शीत ऋतु में नदी तट पर कायोत्सर्ग करना, ध्यान लगाना कायक्लेश तप है। 


    17. कायक्लेश तप क्यों किया जाता है ? 
    कायक्लेश तप से कष्टों को सहन करने की क्षमता आती है, जिनशासन की प्रभावना होती है एवं कर्मो की निर्जरा हो इसलिए किया जाता है। 


    18. अतरंग तप कितने होते हैं ? 
    अतरंग तप छ: होते हैं। प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान।

     
    19. प्रायश्चित तप किसे कहते हैं ?

    1. प्रमाद जन्य दोष का परिहार करना प्रायश्चित तप है। 
    2. व्रतों में लगे हुए दोषों को प्राप्त हुआ साधक, जिससे पूर्व किए अपराधों से निर्दोष हो जाय वह प्रायश्चित तप है।

     

    20. विनय तप किसे कहते हैं ? 

    1. मोक्ष के साधन भूत सम्यकज्ञानादिक में तथा उनके साधक गुरुआदि में अपनी योग्य रीति से सत्कारआदि करना विनय तप है। 
    2. पूज्येष्वादरो विनय: - पूज्य पुरुषों का आदर करना, विनय तप है। 

     

    21. वैयावृत्य तप किसे कहते हैं ? 
    अपने शरीर व अन्य प्रासुक वस्तुओं से मुनियों व त्यागियों की सेवा करना, उनके ऊपर आई हुई आपत्ति को दूर करना, वैयावृत्य तप है।


    22. स्वाध्याय तप किसे कहते हैं ? 

    1. ‘ज्ञानभावनालस्यत्यागः स्वाध्याय:' आलस्य त्यागकर ज्ञान की आराधना करना, स्वाध्याय तप है। 
    2. अंग और अंगबाह्य आगम की वाचना, पृच्छना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय और धर्मकथा करना, स्वाध्याय तप है। 

     

    23. व्युत्सर्ग तप किसे कहते हैं ? 

    1. अहंकार ममकार रूप संकल्प का त्याग करना ही, व्युत्सर्ग तप है। 
    2. बाह्याभ्यन्तर परिग्रह का त्याग करना, व्युत्सर्ग तप है।

     

    24. ध्यान तप किसे कहते हैं ? 
    उत्तम संहनन वाले का एक विषय में चित्तवृत्ति का रोकना ध्यान है, जो अन्तर्मुहूर्त तक होता है। 


    25. दस धर्म कौन-कौन से हैं ? 
    उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयमः, तप, त्याग, आकिञ्चन्य और ब्रह्मचर्य । 

    1. उत्तम क्षमा धर्म - उपसर्ग आने पर, अपशब्द सुनने पर अथवा क्रोध का निमित मिलने पर भी क्रोध नहीं करना, उत्तम क्षमा धर्म है। 
    2. उत्तम मार्दव धर्म - उत्तम कुल, विद्या, बल आदि का गर्व नहीं करना, उत्तम मार्दव धर्म है। 
    3. उत्तम आर्जव धर्म - जो विचार मन में स्थित है वही वचन से कहना तथा शरीर से उसी के अनुसार करना अर्थात् मायाचारी नहीं करना, उत्तम आर्जव धर्म है।
    4. उत्तम शौच धर्म - लोभ का त्याग करके आत्मा को पवित्र बनाना, उत्तम शौच धर्म है।
    5. उत्तम सत्य धर्म - अच्छे पुरुषों के साथ साधु वचन बोलना, उत्तम सत्य धर्म है। 
    6. उत्तम संयम धर्म - अपनी इन्द्रियों व मन को वश में करना और षट्काय के जीवों की रक्षा करना ही, उत्तम संयम धर्म है। 
    7. उत्तम तप धर्म - कर्मों की निर्जरा हेतु बाह्य और आभ्यंतर बारह प्रकार के तपों को तपना, उत्तम तप धर्म है। 
    8. उत्तम त्याग धर्म - संयमी जीवों के योग्य ज्ञानादि का दान करना अथवा राग-द्वेष का त्याग करना उत्तम त्याग धर्म है। 
    9. उत्तम आकिञ्चन्य धर्म - आत्मा के अलावा, संसार का कोई भी पदार्थ मेरा नहीं है इस प्रकार ममत्व परिणाम से रहित होना, उत्तम आकिञ्चन्य धर्म है। 
    10. उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म - स्त्री सम्बन्धी राग का त्यागकर आत्मा के शुद्ध स्वरूप में लीन रहना, उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म है।

     

    26. आचार का अर्थ क्या है एवं वे कौन-कौन से होते हैं ? 
    धार्मिक नियमों को आगम के अनुसार स्वयं पालन करना तथा शिष्यों से पालन कराना, आचार कहलाता है। वे आचार पाँच प्रकार के हैं

    1. दर्शनाचार - नि:शंकादि आठ अंगो का निर्दोष पालन करना, दर्शनाचार है। 
    2. ज्ञानाचार - काल, विनयादि आठ अंगो सहित सम्यकज्ञान  की आराधना करना तथा स्व-पर तत्व को आगमानुसार जानना, ज्ञानाचार है। 
    3. चारित्राचार - निर्दोष सम्यक्चारित्र का पालन करना, चारित्राचार है। 
    4. तपाचार - बारह तपों को निर्दोष पालन करना, तपाचार है।
    5. वीर्याचार - परिषहादिक आने पर अपनी शक्ति को न छिपाकर उत्साहपूर्वक धीरता से साधना करना, विर्याचार  है।

     

    27. छ: आवश्यक कौन-कौन से हैं ?
    समता या सामायिक, वंदना, स्तुति, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान एवं कायोत्सर्ग। ये छ: आवश्यक मुनियों के समान होते हैं।


    28. गुप्ति किसे कहते हैं एवं कितनी होती हैं ?
    गुप्ति-संसार के कारणों से आत्मा के गोपन (रक्षण) को, गुप्ति कहते हैं।

    1. मनोगुप्ति - मन को राग-द्वेष से हटाकर अपने वश में करना ।
    2. वचनगुप्ति - अपने वचनों को वश में करना।
    3. कायगुप्ति - अपने शरीर को वश में करना।

     

    29. आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने आचार्य परमेष्ठी के लिए कौन-सा दोहा लिखा है ?
    आचार्य श्री ने आचार्य परमेष्ठी के लिए सूर्योदय शतक में निम्न दोहा लिखा है
     

    ज्ञायक बन गायक नहीं, पाना है विश्राम।

    लायक बन नायक नहीं, जाना है शिवधाम। 8 ॥

    Edited by admin


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