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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पाठ्यक्रम 19अ - श्रमणों की चमत्कारिक शक्ति - चौसठ ऋद्धियाँ

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    ऋद्धि - तपश्चरण के प्रभाव से योगीजनों को चमत्कारिक शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं, उन्हें ऋद्धियाँ कहते हैं। मुख्य रूप से ऋद्धियाँ आठ होती हैं। उनके उत्तर भेद चौसठ होते हैं। ऋद्धियों के कार्य व शक्ति इस प्रकार हैं -

     

    बुद्धि ऋद्धि

    १. अवधिज्ञान बुद्धि ऋद्धि - जिसमें बिना किसी बाह्य आलम्बन के मर्यादापूर्वक रूपी पदार्थों को जानने की शक्ति होती है।

    २. मन: पर्ययज्ञान बुद्धि ऋद्धि - जिसमें अवधिज्ञान बुद्धि ऋद्धि की तरह मर्यादापूर्वक दूसरों के मनोगत अर्थ को जानने की शक्ति होती है।

    ३. केवलज्ञान बुद्धि ऋद्धि - जिसमें समस्त द्रव्य और उनकी अनंत पर्यायों को वर्तमान पर्याय की तरह स्पष्ट जानने की शक्ति होती है।

    ४. बीज बुद्धि ऋद्धि - एक ही बीज पद को ग्रहण कर उस पद के आश्रय से सम्पूर्ण श्रुत का विचार करने वाली होती है।

    ५. कोष्ठ बुद्धि ऋद्धि - नाना प्रकार के ग्रन्थों में से विस्तारपूर्वक चिह्न सहित शब्द रूप बीजों को अपनी बुद्धि में ग्रहण कर उन्हें मिश्रण के बिना बुद्धि रूपी कोठे में धारण करने की शक्ति होती है।

    ६. पदानुसारी बुद्धि ऋद्धि - ग्रन्थ के एक पद को ग्रहण कर संपूर्ण ग्रन्थ को ग्रहण करने वाली ऋद्धि है। ७. संभिन्न श्रोतृत्व बुद्धि ऋद्धि - श्रोतेन्द्रिय के उत्कृष्ट विषय क्षेत्र से संख्यात योजन बाहर स्थित दसों दिशाओं के मनुष्य एवं तिर्यन्चों की वाणी को एक साथ सुनकर प्रत्युत्तर देने वाली बुद्धि होती है।

    ८. १२. दूर स्पर्शत्व आदि पाँच बुद्धि ऋद्धियाँ - अपनी पृथक-पृथक स्पर्शनादि इन्द्रियों के उत्कृष्ट विषय से बाहर संख्यात योजन में स्थित तत्-तत् संबंधी विषयों को जान लेने की क्षमता को प्राप्त होने वाली बुद्धि का होना।

    १३. दशपूर्वित्व बुद्धि ऋद्धि - दस पूर्वो का ज्ञान कराने वाली बुद्धि।

    १४. चतुर्दश पूर्वित्व बुद्धि ऋद्धि - चौदह पूर्वो का ज्ञान कराने वाली बुद्धि। यह श्रुत पारंगत श्रुत केवलियों के होती है।

    १५ अष्टांग महानिमित्त बुद्धि ऋद्धि - नभ, भौम, अंग, स्वर, व्यंजन, लक्षण चिन्ह और स्वप्न इन आठ निमित्तों से त्रिकाल का ज्ञान कराने वाली बुद्धि।

    १६. प्रज्ञाश्रमण बुद्धिऋद्धि - अध्ययन के बिना ही चौदह पूर्वो के अर्थ का निरूपण करने वाली बुद्धि।

    १७. प्रत्येक बुद्धि ऋद्धि - गुरु के उपदेश के बिना ही संयम-तप में प्रवृत्त कराने वाली बुद्धि।

    १८. वादित्व बुद्धि ऋद्धि - वाद के द्वारा इन्द्र के पक्ष को भी निरस्त कराने में समर्थ बुद्धि।

     

    विक्रिया ऋद्धि

    1. अणु के बराबर सूक्ष्म शरीर बनाने की क्षमता अणिमा विक्रिया ऋद्धि है।
    2. मेरू के बराबर बड़ा शरीर बनाने की क्षमता महिमा विक्रिया ऋद्धि है।
    3. वायु से भी हल्का शरीर करने की क्षमता लघिमा विक्रिया ऋद्धि है।
    4. वज़ से भी भारी शरीर करने की क्षमता गरिमा विक्रिया ऋद्धि है।
    5. भूमि पर स्थित रहकर अंगुलि के अग्रभाग से सूर्य-चन्द्रमा, मेरू शिखर आदि को स्पर्श करने की क्षमता प्राप्ति विक्रिया ऋद्धि है।
    6. जल के समान पृथ्वी पर तथा पृथ्वी के समान जल पर गमन करने की क्षमता प्राकाम्य विक्रिया ऋद्धि है।
    7. सब जगत् में प्रभुत्व बने, जिससे वह ईशित्व विक्रिया ऋद्धि है।
    8. समस्त जीव समूह को वश में करने की क्षमता वशित्व विक्रिया ऋद्धि है।
    9. शैल, वृक्षादि के मध्य में होकर आकाश के समान गमन करने की क्षमता अप्रतिघात विक्रिया ऋद्धि है।
    10. एक साथ अनेक रूप 'घोड़ा, गायादि' बनाने की क्षमता कामरूपित्व ऋद्धि है।
    11. अदृश्य हो जाने की क्षमता अन्तर्धान विक्रिया ऋद्धि है।

     

    क्रिया ऋद्धि

    1. आसन लगाकर बैठे अथवा खड़े हुए भी आकाश में गमन करने की क्षमता नभस्तलगामित्वचारण क्रिया ऋद्धि है।
    2. जलकायिक जीवों को बाधा न पहुँचाते हुए इच्छानुसार जल, कुहरा, ओस, बफॉदि में गमन करने की क्षमता जलचारणत्व क्रिया ऋद्धि है।
    3. चार अंगुल प्रमाण पृथ्वी को छोडकर आकाश में घुटनों को मोड़े बिना बहुत योजनों तक गमन करने की क्षमता जंघाचारण क्रिया ऋद्धि है।
    4. फल, पत्र तथा पुष्पादि में स्थित जीवों अथवा उनके आश्रित जीवों की विराधना न करते हुए उनके ऊपर पैर रखकर चलने की क्षमता फल पत्र पुष्प चारण क्रिया ऋद्धि है।
    5. अग्नि शिखा में स्थित जीवों की विराधना न करके उन पर चलने तथा धुएँ का सहारा ले ऊपर चढ़ने की शक्ति अग्नि धूम चारण क्रिया ऋद्धि है।
    6. जलकायिक जीवों को बाधा पहुँचाये बिना मेघ पर तथा बरसती जलधारा पर चलने की क्षमता मेघ चारण क्रिया ऋद्धि है।
    7. मकड़ जाल के तंतु अथवा वृक्ष के तन्तुओं पर जीवों को बाधा पहुँचाये बिना चलने व चढ़ने की क्षमता तन्तु चारण क्रिया ऋद्धि है।
    8. सूर्य, चन्द्र, तारा, नक्षत्र, ग्रह की किरणों का अवलम्बन ले योजनों तक गमन करने की क्षमता ज्योतिष चारण क्रिया ऋद्धि है।
    9. वायु की पंक्ति के सहारे कोशों तक चलने की क्षमता मरुच्चारण क्रिया ऋद्धि है।

     

    तप ऋद्धि

    1. दीक्षा उपवास को आदि कर मरण पर्यत एक-एक उपवास अधिक करने की शक्ति उग्र तप ऋद्धि है। (जैसे- पारणा दो उपवास, पारणा तीन उपवास, पारणा चार उपवास इत्यादि क्रम से बढते जाना)
    2. बहुत उपवास हो जाने के बाद भी शरीर सूर्य की किरणों के समान चमकता रहे ऐसी शक्ति दीप्त तप ऋद्धि है।
    3. तपे हुए लोह पर गिरी जल बूंद के समान खाया हुआ अन्नादि सब क्षीण हो जाये अर्थात् मल-मूत्रादि रूप परिणमन न हो, ऐसी शक्ति तप्त तप ऋद्धि है।
    4. सभी ऋद्धियों की उत्कृष्टता को प्राप्त करने वाले मंदर पंक्ति, सिंहनिष्क्रीड़ित आदि उपवास करने की क्षमता प्राप्त होना महातप ऋद्धि है।
    5. अनशनादि बारह तपों का उग्रता से पालन, हिंसक जंतुओं से भरे जंगल में निवास, अभ्रावकाश आदि योग धारण की क्षमता का प्राप्त होना घोर तप ऋद्धि है ।
    6. अनुभव एवं वृद्धिगत तप से सहित, तीन लोक के संहार की शक्ति से युक्त, कटक, शिला, अग्नि आदि बरसाने में समर्थ, समुद्र की जलराशि को सुखा देने में समर्थ घोरपराक्रम तप ऋद्धि है।
    7. जिस ऋद्धि के निमित्त से दु:स्वप्न नष्ट हो जाते हैं, अविनश्वर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन हो, मुनि के रहने वाले क्षेत्र में चोरादिक की बाधाएँ अकाल एवं महायुद्ध आदि न हों, अघोर ब्रह्मचारित्व तप ऋद्धि है।

     

    बल ऋद्धि

    1. एक मुहूर्त काल के भीतर अन्तमुहूर्त में संपूर्ण श्रुत का चिंतन करने की क्षमता मनोबल ऋद्धि है।
    2. जिस ऋद्धि के प्रकट होने पर मुनि श्रम रहित अहीन कठ होता हुआ मुहूर्त मात्र काल के भीतर संपूर्ण श्रुत को जानता व उच्चारण करता है। वह वचन बल ऋद्धि है।
    3. जिस ऋद्धि के प्रभाव से चतुर्मासादिक रूप कायोत्सर्ग करते हुए भी श्रम रहितता हो तथा कनिष्ठ अंगुली मात्र से तीन लोक को उठाकर अन्यत्र स्थापित करने की क्षमता हो काय बल ऋद्धि है।

     

    औषधि ऋद्धि

    1. जिस ऋद्धि के प्रभाव से ऋषि के हाथ-पैर के स्पर्श मात्र से रोगी का रोग दूर हो जाये आमर्ष औषधि ऋद्धि है।
    2. ऋषि के लार, कफ, थूक, आदि में रोग को दूर करने की क्षमता क्ष्वेल औषधि ऋद्धि है।
    3. पसीने के आश्रय से शरीर में लिप्त मल जल्ल कहलाता है। उस जल्ल में रोग दूर करने की क्षमता जल्लौषधि ऋद्धि है।
    4. जिस शक्ति के निमित्त से जिह्वा, ऑठ, दाँत, कर्ण एवं नासिका का मल रोग दूर करने का कारण बने मल औषधि ऋद्धि है।
    5. जिस ऋद्धि से मल-मूत्र, रुधिर आदि रोग दूर करने में कारण बनें वह विपृष् औषधि ऋद्धि है।
    6. जिस ऋद्धि के बल से मुनि से स्पर्शित जल तथा वायु सर्व रोग को हरने वाली हो सर्वोषधि ऋद्धि है।
    7. जिस शक्ति के निमित्त से वचन मात्र द्वारा महाविष से व्याप्त व्यक्ति निर्विष हो जाये अथवा विष युक्त भोजन भी निर्विषता को प्राप्त हो मुखनिर्विष ऋद्धि कहलाती है।
    8. रोग व विष से युक्त जीव जिस ऋद्धि के प्रभाव से झट देखने मात्र से ही नीरोगता व निर्विषता को प्राप्त हो जाये दृष्टि निर्विष ऋद्धि कहलाती है।

     

    रस ऋद्धि

    १. मर जाओ - ऐसा कहने पर जीव शीघ्र ही मर जाये ऐसी शक्ति आशीर्विष ऋद्धि है।

    २. जिस ऋद्धि के बल से रोष युक्त ऋषि से देखा गया जीव, सर्प से काटे गये के समान तुरंत मर जावे वह दृष्टि विष ऋद्धि है।

    नोट - वीतरागी श्रमण ऐसा अपकार कभी नहीं करते। यहाँ केवल तप का प्रभाव बतलाया गया है।

    ३. ६ - जिस ऋद्धि के प्रभाव से हाथ में रखा हुआ रूखा सूखा अन्न भी दुग्ध, मधु, अमृत, तथा घृत रूप परिणाम को प्राप्त हो जावें अथवा जिनके वचनों को सुनकर तिर्यज्च व मनुष्यों के दु:ख शांत हो जावे, वे क्रमश: क्षीरस्रावि, मधुरस्रावि, अमृतस्रावि एवं सर्पिस्रावि रस ऋद्धियाँ हैं।

     

    अक्षीणा ऋद्धि

    1. जिस ऋद्धि के प्रभाव से मुनि के आहार के पश्चात् शेष बचे भोजन में, चक्रवर्ती की पूरी सेना भी जीम ले तो भी थोड़ा-सा भोजन कम न पड़े वह अक्षीण महानस ऋद्धि है।
    2. जिस ऋद्धि के प्रभाव से समचतुष्कोण चार धनुष प्रमाण क्षेत्त्र में असंख्यात मनुष्य व तिर्यञ्च बिना किसी व्यवधान के बैठ सके, वह अक्षीण महालय ऋद्धि है।

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