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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पाठ्यक्रम 2अ - कल्याणकारी महामंत्र - णमोकार

       (2 reviews)

    'णमोकार महामंत्र' (प्राकृत भाषा)          नमस्कार महामंत्र (हिन्दी भाषा)

    णमो अरिहंताणं                                    अरिहंतों को नमस्कार

    णमो सिद्धाणं                                        सिद्धों को नमस्कार

    णमो आइरियाणं                                   आचार्यों को नमस्कार

    णमो उवज्झायाणं                                 उपाध्यायों को नमस्कार

    णमो लोए सव्व साहूणं                          लोक में (स्थित) सभी साधुओं को नमस्कार

     

    णमोकार मंत्र की महिमा

    'एसो पंच णमोयारो, सव्वपावप्प पणासणो।

    मंगलाण च सव्वेसिं, पढ़मं हवइ मंगल।'

    यह पंचनमस्कार मंत्र सभी पापों का नाश करने वाला है

    तथा सभी मंगलो में प्रथम (श्रेष्ठ) मंगल है।

     

    णमोकार मंत्र का स्वरूप -

    अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, एवं साधु इन पाँच परमेष्ठियों को जिस मंत्र में नमस्कार किया गया है उसे णमोकार मंत्र कहते है। णमोकार मंत्र सभी मंत्रो में श्रेष्ठ अर्थात प्रधान है। इसमें किसी व्यक्ति विशेष को नमस्कार नहीं किया गया है अपितु शास्त्रों में कहे गये विशिष्ट गुणों से सहित परम-आत्माओं को नमस्कार किया गया है।

     

    णमोकार मंत्र के अन्य नाम -

    इस मंत्र के अन्य नाम भी कहे जाते हैं, जैसे महामंत्र, मूलमंत्र, मंत्रराज, मृत्युञ्जयी मंत्र, अपराजित मंत्र, पंच नमस्कार मंत्र, अनादि-अनिधन मंत्र, सर्वकालिक मंत्र, त्रैकालिक मंत्र, मंगल मंत्र इत्यादि।

     

    णमोकार मंत्र का इतिहास -

    पंच-परमेष्ठी अनादिकाल से होते आ रहे हैं तथा आगे भी अनंतकाल तक होते रहेंगे, इस अपेक्षा से यह मंत्र अनादि-अनिधन है इसका कोई रचयिता नहीं है। लगभग २००० वर्ष पूर्व प्रथम शताब्दी में आचार्य पुष्पदन्त एवं आचार्य भूतबली मुनिराज द्वारा रचित सिद्धांत ग्रन्थ षट्खण्डागम जी में मंगलाचरण के रूप में पूर्ण एवं शुद्ध णमोकार मंत्र को सर्वप्रथम लिपिबद्ध किया गया।

     

    णमोकार मंत्र में पदादि -

    यह मंत्र प्राकृत भाषा में आर्या छंद के रूप में लिखा गया है। इस मंत्र का निरन्तर स्मरण करन वाल साधक का चित प्रसन्नता और निर्मलता का अनुभव करता है। इसमें ५ पद ३५ अक्षर तथा ५८ मात्राएँ हैं।

     

    णमोकार मंत्र की महिमा -

    इस मंत्र के स्मरण और चिन्तन मनन से समस्त बाधाएं दूर हो जाती है। मरणोन्मुख कुत्ते को जीवन्धर कुमार ने णमोकार मंत्र सुनाया था, जिसके प्रभाव से वह पाप पड़ से लिप्त श्वान मरणोपरान्त स्वर्ग में देव हो गया था। अत: सिद्ध है कि यह मंत्र आत्म विशुद्धि का बहुत बड़ा कारण है।

     

    णमोकार मंत्र और जाप -

    जो मन को एकाग्र, शांत कर दे अर्थात मंत्रित, नियन्त्रित कर दे उसे मन्त्र कहते है। मन को एकाग्र करने हेतु यथा - तथानुपूर्वी मन्त्र का जाप, पाठ कर सकते है जैसे णमो आइरियाण से शुरू करना इत्यादि। यह मन्त्र १८४३२प्रकार से बोला जा सकता है। मन्त्र को पवित्र अथवा अपवित्र किसी भी दशा में पढ़ सकते हैं। विशेष इतना है कि पवित्र द्रव्य, क्षेत्र, काल में ही मुख से उच्चारण करें अन्यथा मन में ही मनन, चिन्तन करना चाहिए। णमोकार मंत्र के जाप की विधियाँ

     

    1. बैखरी - उच्चारण पूर्वक लय से णमोकार मन्त्र का शुद्ध पाठ/उच्चारण करना।
    2. उपांशु - उच्चारण जिसमें ओष्ट एवं जिहवा हिलती है मगर आवाज बाहर नहीं आती।
    3. पश्य - मन ही मन णमोकार मंत्र का जाप जिसमें न ओष्ठ हिलते है और न ही जिहवा।
    4. परा - णमोकार मन्त्र के जाप में पञ्चपरमेष्ठियों के मूलगुण एवं स्वरूप में काय का ममत्व छोड़कर लीन हो जाना।

     

    णमोकार मत्र और जाप

    जाप पूर्व एवं उत्तरदिशा की ओर मुख करके खड्गासन,पद्मासन, सुखासन अथवा अर्धपद्मासन में स्थित होकर देना चाहिए।  आचार्य श्री ने मूकमाटी में नौ की संख्या को अक्षय स्वभावली, अजर, अमर, अविनाशी, आत्म तत्व को उद्बोधिनी माना है। नौ के अंक की यह विशेषता है कि इसमें २, ३ आदि संख्याओं का गुण करने तथा गुणनफल को जोड़ने पर नौ (९) ही शेष बचता हैं। जैसे -

    ९x२ = १८              १+८ = ९

    ९x३ = २७             २ +७ = ९

    ९x९ = ८१              ८+१ = ९

    अत: कम से कम नौ बार णमोकार मन्त्र का जाप अवश्य करना चाहिए।

    णमोकार मंत्र को तीन श्वासोच्छवास में पढ़ना चाहिए। पहली श्वास (ग्रहण करते समय में णमो अरिहंताण, उच्छवास (छोड़ते समय) में णमो सिद्धाण, दूसरी श्वांस में णमो आइरियाण उच्छवास में णमो उवज्झायाण और तीसरी श्वांस में णमो लोए और उच्छवांस में सव्व साहूर्ण बोलना चाहिए। १०८ बार के जाप में कुल ३२४ श्वाँसोच्छवास होते हैं।

     

    णमोकार के पदों का ध्यान क्रमश: सफेद, लाल, पीला, नीला और काले रंग में करना चाहिए अर्थात श्वांस की तूलिका से शून्य की (आकाश की) पाटी पर क्रमश: इन रंगो से पाँच पदो को लिखते जायें। ये रंग क्रमश: ज्ञान, दर्शन, विशुद्धि, आनन्द और शक्ति के केन्द्र माने गये हैं।


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    रतन लाल

       3 of 3 members found this review helpful 3 / 3 members

    अनादिनिधन महामंत्र पर विशेष

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    आपकी सेवा  बेजोड़ हैं। आप से एक निवेदन है कि संयम स्वर्ण  महोत्सव के बाद भी  जारी  करें ताकि  हम लोग कुछ न कुछ  पढ सकते है ।

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