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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पाठ्यक्रम 18ब - रामायण का सच्चा स्वरूप - जैन रामकथा

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    राम, रावण, हनुमान, लक्ष्मण आदि महापुरुषों के चरित्र सम्बन्धी अनेक विचारधाराएँ वर्तमान में प्रचलित हैं। लेकिन इनके वास्तविक स्वरूप को जानने के लिए जैन ग्रन्थों का आधार लेना आवश्यक है। इस पाठ में हम संक्षिप्त कथा के माध्यम से रामलक्ष्मण, हनुमान आदि का यथार्थ स्वरूप समझेंगे।

     

    मुनिसुव्रतनाथ तीर्थकर के काल में उत्पन्न नवमें बलभद्र श्री राम अत्यन्त लोकप्रिय महापुरुष हुए। जैनाचार्यों द्वारा प्रतिपादित ग्रंथों के अनुसार संक्षिप्त में रामकथा इस प्रकार है - अयोध्या के राजा दशरथ की चार रानियाँ थीं, जिनके नाम अपराजिता (कौशल्या), सुमित्रा, कैकेयी और सुप्रभा था। बड़ी राशि अपराजिता (कौशल्या) के राम (पद्म) नाम का पुत्र हुआ एवं शेष रानियों के क्रमश: लक्ष्मण, भरत, शत्रुध्न नाम के पुत्र हुए।

     

    यौवनावस्था प्राप्त होने पर राम का विवाह राजा जनक की पुत्री सीता के साथ कर दिया गया। दिगम्बरी दीक्षा धारण करने की भावना होने पर, संसार - शरीर और भोगों से उदासीन हो दीक्षा धारण करने के लिये उद्यत राजा दशरथ ने अपने ज्येष्ठ पुत्र राजकुमार राम को राजगद्दी देनी चाही, पर कैकेयी को दिये हुये वचन के कारण भरत को राजा बनाकर स्वयं ने सर्वभूतशरण्य मुनिराज से समस्त परिग्रह को त्याग कर दैगम्बरी दीक्षा धारण की। उधर राम, लक्ष्मण और सीता, राजा भरत के राज्य की सीमा से बहुत दूर जा दण्डक वन में रहने लगे।

     

    बहुत काल व्यतीत होने पर एक दिन रावण नाम का विद्याधर सीता का रूप लावण्य देखकर मोहित हो गया एवं छल से उसने सीता का हरण कर लिया। पश्चात् सीता की खोज के लिये निकले राम की महिमा सुनकर हनुमान-विद्याधर राम के पास पहुँचा। पश्चात् सुग्रीव, भामण्डल आदि अनेक विद्याधर राजाओं के साथ राम-लक्ष्मण सेना सहित आकाश मार्ग से लंका पहुँचे। वहाँ रावण का छोटा भाई विभीषण भी अधर्म का साथ छोड़कर राम के साथ आ मिला। राम और रावण की सेना के बीच कई दिनों तक भयंकर युद्ध चला, अन्त में रावण ने चक्ररत्न चला दिया तो वह तीन प्रदक्षिणा दे चक्ररत्न लक्ष्मण के हाथ में आ जाता है एवं लक्ष्मण नारायण घोषित होते हैं और उसी चक्ररत्न से रावण (प्रतिनारायण) का वध कर देते हैं। तदनन्तर विभीषण को लंका का राज्य सौंपकर, कुछ दिन विभीषण के आतिथ्य में रहकर, राम, लक्ष्मण और सीता के साथ वापस अयोध्या नगर में आ जाते हैं।

     

    राजा भरत पूर्व से वैराग्य भाव को धारण किये हुए उदासीन भाव से राजपाठ सम्हाल रहे थे। रामचन्द्र जी के वापस आते ही, राम को राजा बनाकर स्वयं दिगम्बर दीक्षा धारण करते हैं। कालान्तर में सीता के विषय में लोकोपवाद होने पर, कुलमर्यादा की रक्षा हेतु राम, गर्भवती सीता का परित्याग कर देते हैं तथा तीर्थयात्रा के दोहले (इच्छा अथवा भाव) को पूर्ण करने के बहाने कृतान्तवक्र सेनापति के द्वारा जंगल में सीता को छुड़वा देते हैं जब कृतान्तवक्र के सीताजी से कहा माँ रामचन्द्र जी से कोई संदेश कहना है क्या? तब सीता ने कहा 'जिस प्रकार प्रजा के कहने पर मुझे छोड़ दिया, उसी प्रकार किसी के कहने पर धर्म को नहीं छोड़ना।'अथानन्तर पुण्य योग से सीता के समीप विद्याधर राजा वज़जंघ जंगल में पहुँचा एवं सीता को बहिन बनाकर अपने महल में ले जाता है। वहीं सीता ने अनंग लवण और मदनांकुश नामक युगल पुत्रों को जन्म दिया।

     

    सिद्धार्थ नामक क्षुल्लक से शिक्षा प्राप्त कर बड़े हुए उन पुत्रों को जब अपनी माँ की पूरी कहानी पता चली तो उन्होंने युद्ध हेतु अयोध्या नगरी को घेर लिया। घोर युद्ध हुआ जब राम सेना सहित उन पुत्रों को न जीत सके तब सिद्धार्थ क्षुल्लक नामक नारद जी ने राम लक्ष्मण से उनका रहस्य प्रकट किया। तब उन्होंने युद्ध को छोड़कर पुत्रों को पुकारा और वे पिता-पुत्र आपस में प्रीति को प्राप्त हुए।

     

    समस्त लोगों के समक्ष निर्दोषता सिद्ध करने की शर्त पर राम ने सीता को बुलाया और उनकी अग्नि परीक्षा ली तब अग्निकुण्ड जलकुण्ड बन गया और देवताओं ने सीता जी को सिंहासन पर बैठाकर जय-जय कार किया। परीक्षा में निर्दोष सिद्ध होने पर राम ने सीता से राजमहल में चलने का आग्रह किया, परन्तु सीता ने कहा अब मैं भवन की ओर नहीं किन्तु वन की ओर जाऊँगी और आत्मकल्याण करूंगी। तब राम की आज्ञा ले सीता ने पृथ्वीमती आर्यिका से आर्यिका के व्रतों को अंगीकार किया एवं स्त्री पर्याय के छेदन हेतु घोर तप करने लगी। तपस्या करते हुये आयु की पूर्णता निकट जान तैतीस दिन की सल्लेखना धारण कर समाधिमरण को प्राप्त हो अच्युत स्वर्ग में स्त्री पर्याय से छूट पुरुष पर्याय में प्रतीन्द्र हो गयी।

     

    एक दिन भाई-भाई के प्रेम की परीक्षा करने आये देवों के द्वारा ऐसा कहने पर कि राम की मृत्यु हो गई, सुनते ही लक्ष्मण मरण को प्राप्त हो जाते हैं। राम मोह के वशीभूत हो उनके शव को अपने कंधे पर लटकाये छह माह तक पागलों की भाँति भटकते रहे। तदनन्तर देवों के द्वारा अनेक प्रकार से सम्बोधे जाने पर प्रतिबोध को प्राप्त हो, सीता के पुत्र अनंग लवण को राज्य सौंपकर राम ने निग्रन्थ दीक्षा धारण की। घोर तप करते हुये माघ शुक्ल द्वादशी को श्री राम मुनि ने केवलज्ञान प्राप्त किया एवं आयु कर्म के पूर्ण होने पर अष्ट कर्मों को क्षय कर मांगीतुंगी से मोक्ष को प्राप्त किया।

     

    जैन रामकथा के महत्वपूर्ण बिन्दु

    1. रावण राक्षस नहीं था अपितु रावण का जन्म राक्षस वंश में हुआ था। वह विद्याधर तीन खण्ड का स्वामी, अत्यन्त रूपवान, नीति का ज्ञाता विद्वान् था। रावण के बचपन का नाम दशानन था।
    2. कुम्भकर्ण की बुद्धि सदा धर्म में लीन रहती थी, वह शूरवीर था, कलाओं में निपुण, पवित्र भोजन करने वाला तथा शयनकाल में ही निद्रा लेने वाला था। रावण की मृत्यु के पश्चात् अनन्तवीर्य केवली के समक्ष मुनि दीक्षा अंगीकार की एवं चूलगिरि पर्वत (बावनगजा) से मोक्ष प्राप्त किया।
    3. विभीषण ने राम के साथ मुनि दीक्षा धारण की। रावण की बहिन चन्द्रनखा एवं पत्नि मंदोदरी ने शशिकान्ता आर्यिका से दीक्षा ली।
    4. हनुमान बन्दर नहीं सुन्दर महापुरुष वानरवंश के शिरोमणि तद्भव मोक्षगामी थे। अंजना का मामा प्रतिसूर्य जब बालक को अपने निवास हनुरुह द्वीप ले जा रहा था तब बालक विमान से उछलकर नीचे शिला पर गिर पड़ा, जिस शिला पर बालक गिरा वह शिला चूर-चूर हो गई, संभवत: इसलिये उनका एक नाम वज़ांग (बजरंग) पड़ा हो। शैल (पर्वत) की गुफा में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण श्रीशैल किया गया, पिता पवनंजय के कारण पवनपुत्र भी कहा जाता है। हनुरुह द्वीप में पालन-पोषण होने से लोक में हनुमान नाम प्रसिद्ध हुआ। इनके शरीर की समस्त क्रियायें मनुष्यों के समान ही थीं। वे अत्यन्त सुन्दर, कांति के धारक, कामदेव थे। उन्होंने मुनिदीक्षा धारण की एवं मांगीतुंगी से मोक्ष प्राप्त किया।
    5. राजा जनक की रानी विदेहा के गर्भ से एक साथ पुत्र और पुत्री का जन्म हुआ। पुत्र का नाम भामण्डल एवं पुत्री का नाम सीता रखा गया।
    6. कर्णरवा नदी के तट पर राम-सीता ने चारण-ऋद्धिधारी मुनियुगल सुगुप्ति और गुप्ति मुनियों को आहार दान दिया। तभी देवों द्वारा पंचाश्चर्य किये गये। उसी समय एक गिद्ध पक्षी आया और मुनि के चरणोदक में लौटने लगा। उस चरणोदक के प्रभाव से उसका शरीर रत्नों की कांति के समान उज्जवल एवं पंख सुवर्ण के समान हो गये।उस गिद्ध पक्षी ने मुनिराज के उपदेश से श्रावक के व्रतों को स्वीकार किया एवं राम लक्ष्मण के साथ रहने लगा। चूँकि उसके शरीर पर रत्न तथा स्वर्ण निर्मित किरण रूपी जटाएँ सुशोभित होती थीं, अत: राम आदि उसे जटायु नाम से पुकारते थे।
    7. जब लक्ष्मण रावण के द्वारा अदृश्य शक्ति से मूच्छित कर दिये गये थे, तब राजकुमारी विशल्या को समीप लाने पर लक्ष्मण स्वस्थ्य हो गये और वह शक्ति भाग गई। पश्चात् लक्ष्मण से विशल्या का विवाह कर दिया गया।
    8. रावण-मंदोदरी के पुत्र इन्द्रजीत और मेघवाहन ने रावण वध के बाद अनन्तवीर्य महामुनि के पास दीक्षा ली और अंत में केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष गये।
    9. श्री रामचन्द्रजी की आयु 17000 वर्ष की थी एवं शरीर की ऊँचाई सोलह धनुष (64 हाथ=96 फीट) प्रमाण थी। त्रिखण्डाधिपति लक्ष्मण की आयु 12,000 वर्ष की थी एवं शरीर की ऊँचाई सोलह धनुष प्रमाण थी।
    10. अनेक विद्याओं को धारण करने वाले, देवों के समान आकाश में गमन करने वाले, अनेक रूप धारण करने में सक्षम विद्याधर श्रेणी में रहने वाले मनुष्य विद्याधर कहलाते हैं, वे भी विद्याओं का त्यागकर मुनि बन सकते हैं एवं कर्म काट मुक्ति जा सकते हैं।

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