जैन शासन में ऐसे अनेक कवि और लेखक हुए हैं, जो श्रावक पद का अनुसरण करते हुए राष्ट्रीय, सांस्कृतिक, जातीय एवं आध्यात्मिक भावनाओं की अभिव्यक्ति में पूर्ण सफल हुए। जिन तथ्य या सिद्धान्तों को श्रुतधर, सारस्वत, प्रबुद्ध और परम्परा पोषक आचार्यों ने आगमिक शैली में विवेचित किया है, उन तथ्य या सिद्धान्तों की न्यूनाधिक रूप में अभिव्यक्ति कवि और लेखकों द्वारा भी की गई है। अत: कुछ विद्वानों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को इस लेख में प्रस्तुत किया जा रहा है।
महाकवि धनञ्जय
- ईसा की सातवी-आठवी शताब्दी के लगभग (१२०० वर्ष पूर्व) द्विसंधान महाकाव्य के प्रणेता परम जैन कविराज धनऊजय का जन्म हुआ था। इनकी माता का नाम श्री देवी, पिता का नाम वसुदेव तथा गुरु का नाम दशरथ माना गया है।
- जीवन की प्रमुख घटना - जिस समय आपके इकलौते पुत्र को सर्प ने डस लिया था, उस समय आप जिन-पूजा में लीन थे। घर से समाचार आने पर भी आप जिन-पूजा में लीन रहे। तब धर्मपत्नि ने मूच्छित पुत्र को लाकर पति से सामने डाल दिया। पूजा से निवृत होकर, जिन-भक्ति के प्रभाव स्वरूप, तत्काल विषापहार स्तोत्र की रचना प्रारंभ की, रचना पूर्ण होते-होते पुत्र के शरीर का विष पूर्णत: उतर गया और वह निर्विष होकर खड़ा हो गया। चारों ओर जैन धर्म की जय-जयकार गूंज उठी तथा धर्म की अभूतपूर्व प्रभावना हुई।
- आपने द्विसन्धान महाकाव्य, विषापहार स्तोत्र एवं धनञ्जय नाममाला ऐसे प्रधानत: तीन ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखे।
महाकवि आशाधर जी
- ईसा की तेरहवीं शताब्दी के लगभग (७०० वर्ष पूर्व), वि.स. १२३०-३६ के लगभग दिगम्बर जैन परम्परा में संस्कृत भाषा के अद्वितीय विद्वान प. आशाधर जी का जन्म हुआ था। आप माण्डलगढ़ (मेबाड़) के मूल निवासी थे। इनके पिता का नाम सल्लक्षण एवं माता का नाम श्रीरत्नी था।
- आशाधर जी का अध्ययन बड़ा ही विशाल था। इनके विद्यागुरु प्रसिद्ध विद्वान पण्डित महावीर थे। वे जैनाचार, आध्यात्म, दर्शन, काव्य, साहित्य, कोष, राजनीति, कामशास्त्र, आयुर्वेद आदि सभी विषयों के प्रकाण्ड विद्वान पण्डित थे। स्वयं गृहस्थ रहने पर भी बड़े-बड़े मुनि और भट्टारकों ने इनका ज्ञान की अपेक्षा शिष्यत्व स्वीकार किया था।
- पण्डित आशाधर जी के तीन ग्रन्थ मुख्य हैं और सर्वत्र पाये जाते हैं। जिनयज्ञ कल्प, सागार धर्मामृत और अनगार धार्ममृत।
महाकवि बनारसी दास
- ईसा की सोलहवी शताब्दी (४०० वर्ष पूर्व) संवत् १६४३ में हिन्दी साहित्य के महाकवि बनारसी दास जी का जन्म एक धनी परिवार में हुआ था। इनके पिता खड़गसेन जवाहारात के व्यापारी थे। पुत्र के जन्म का नाम विक्रमाजीत था, काशी के पण्डित ने उनका नाम बनारसी दास रखा।
- कवि जन्मना श्वेताम्ब - साम्प्रदाय के अनुयायी थे। आध्यात्म ग्रंथ समयसार एवं गोमटसार ग्रन्थ को पढ़कर व सुनकर बनारसी दास जी दिगम्बर साम्प्रदाय के अनुयायी बन गये। बनारसी दास जी के नाम से निम्नलिखित रचनाएं प्रचलित है। नाममाला,समयसार नाटक, बनारसा विलास, अद्धकथानक, महााववक युद्ध, नवरस पद्यावला।
प. टोडरमल
- आचार्य कल्प प. टोडरमल जी का जन्म वि.स. १७९७ को जयपुर में हुआ था। पिता का नाम जोगीदास और माता का नाम रमा या लक्ष्मी था। इनके गुरु का नाम बंशीधर जी मैनपुरी बतलाया जाता है।
- टोडरमल जी बाल्यकाल से ही प्रतिभाशाली थे, गुरु जी इन्हे स्वयंबुद्ध कहते थे। वे व्याकरण के सूत्रों को गुरु से भी स्पष्ट व्याख्या करके सुनाते थे। छह माह में ही इन्होंने जैनेन्द्र व्याकरण को पूर्ण कर लिया था।
- टोडरमल जी की कुल ११ रचनाएं है। जिनमें सात टीका ग्रन्थ और चार मौलिक ग्रन्थ है। मौलिक ग्रन्थ १. मोक्षमार्ग प्रकाशक, २. आध्यात्मिक पत्र, ३. अर्थ संदृष्टि, ४. गोम्मट सार पूजा
टीका ग्रन्थ:-
- गोम्मट सार(जीवकाण्ड)
- गोम्मट सार (कर्मकाण्ड)
- लब्धिसार टीका
- क्षपणासार वचनिका
- त्रिलोकसार टीका
- आत्मानुशासन (वचनिका)
- पुरुषार्थ सिद्ध्युपाय - इस ग्रन्थ की टीका अधूरी रह गई थी जिसे पण्डित दौलतराम कासलीवाल जी ने पूर्ण की।