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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पाठ्यक्रम 27अ - जैन परमाणु विज्ञान – अणु एवं स्कन्ध

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    पुद्गल जैन दर्शन का विशिष्ट पारिभाषिक शब्द है। अन्य दर्शनों में इसे भूत तथा आधुनिक विज्ञान में इसे मैटर अथवा एनर्जी के नाम से जाना जाता है। यह चेतना शून्य, मूर्त-स्पर्श, रस, गंध वर्ण से युक्त द्रव्य है। जो एक दूसरे के साथ मिलकर बिछुड़ता रहे, ऐसे पूरण गलन स्वभावी मूर्तिक जड़ पदार्थ पुद्गल कहलाता है।

    पुद्गल के दो भेद हैं - 1 अणु और 2. स्कन्ध। अणु को परमाणु भी कहते हैं।

     

    परमाणु

    1. जो अत्यन्त तीक्ष्ण शस्त्र से भी छेदा या भेदा नहीं जा सकता तथा जल और अग्नि के द्वारा नाश को प्राप्त नहीं होता ऐसे पुद्गल द्रव्य के अन्तिम छोटे से छोटे भाग को परमाणु कहते हैं।
    2. एक परमाणु में स्पर्श गुण की दो (स्निग्ध - रूक्ष में से एक तथा शीत उष्ण में से एक), रस गुण की एक, गंध गुण की एक तथा वर्णगुण की एक इस प्रकार चार गुणों की पाँच पर्याय होती हैं।
    3. स्वयं ही जिसका आदि है, स्वयं ही जिसका अन्त है। इन्द्रिय से ग्राहय नही है, ऐसे अविभागी द्रव्य को परमाणु जानना चाहिए। इसका आकार गोल होता है।

     

    स्कन्ध

    १. जिनमें स्थूल रूप से पकड़ना, रखना आदि व्यापार होता है अर्थात् जिन परमाणुओं ने परस्पर बन्ध कर लिया है वे स्कन्ध कहलाते हैं। स्कन्ध के छह भेद कहे गये है जिनमें:-

    १. बादर-बादर स्कन्ध २. 'बादर स्कन्ध ३. बादर सूक्ष्म स्कन्ध ४. सूक्ष्म बादर स्कन्ध ५. सूक्ष्म स्कन्ध ६. सूक्ष्म-सूक्ष्म स्कन्ध ।

    • काष्ठ, पाषाण आदि जो कि छेदन करने पर स्वयं आपस में न जुड़ सके तथा जिन्हे एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से ले जाया जा सके, उन्हें 'बादर-बादर' अथवा स्थूल-स्थूल स्कन्ध कहते हैं।
    • जिन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जा सकता है किन्तु छिन्न-भिन्न करने पर जो स्वयं जुड़ जाते हैं ऐसे दूध, पानी तेल आदि तरल पदार्थ स्थूल अथवा बादर स्कन्ध कहे जाते हैं।
    • जिसे नेत्र इन्द्रिय के द्वारा देखा जा सके किन्तु पकड़ में न आ सके, ऐसे छाया, प्रकाश आदि 'बादर-सूक्ष्म स्कन्ध' है। चूंकि ये दिखते हैं इसलिए स्थूल हैं तथा पकड़ में न आने के कारण सूक्ष्म कहे जाते हैं।
    • जो आँखों से तो नहीं दिखते हों किन्तु शेष इन्द्रियों के द्वारा अनुभव किये जाते हैं ऐसे हवा, गंध, रस आदि 'सूक्ष्म-बादर स्कन्ध' कहे जाते हैं। शब्द, रस, गन्ध, स्पर्श सूक्ष्म-बादर कहलाते हैं क्योंकि यद्यपि इनका चक्षु इन्द्रिय के द्वारा ज्ञान नही होता इसलिए ये सूक्ष्म हैं परन्तु अपनी-अपनी कर्ण आदि इन्द्रियों के द्वारा इनका ग्रहण हो जाता है इसलिए स्थूल भी कहलाते हैं।
    • जो किसी भी इन्द्रिय का विषय न बने ऐसे कार्मण स्कन्ध की 'सूक्ष्म स्कन्ध' संज्ञा है।
    • अत्यन्त सूक्ष्म द्वयणुक स्कन्ध को सूक्ष्म - सूक्ष्म स्कन्ध कहते हैं। यह स्कन्धों की अन्तिम इकाई है।
    • अनन्त परमाणुओं का स्कन्ध भी लोक के एक प्रदेश में रह सकता है इसका कारण यह है कि पुद्गल परमाणु भी अवगाहन स्वभाव वाला है और उसका सूक्ष्म रूप से परिणमन हो जाता है, जिस प्रकार एक कमरे में अनेक दीपकों का प्रकाश (मूर्तिक) रह जाता है उसी प्रकार मूर्त पुदगलों का एक जगह अवगाह होने में कोई विरोध नहीं।
    • चाक्षुष और अचाक्षुष के भेद से स्कन्ध दो प्रकार के होते हैं। चाक्षुष का अर्थ चक्षु (नेत्र) इन्द्रिय का विषय तथा अचाक्षुष का अर्थ नेत्र इन्द्रिय का विषय न होना अर्थात देखने में न आने वाला। अनन्तानन्त परमाणुओं के समुदाय से निष्पन्न होकर भी कोई स्कन्ध चाक्षुष होता है और कोई अचाक्षुष। अचाक्षुष स्कन्ध भी भेद और संघात से चाक्षुष बन जाता है जैसे हथेली में मल दिखता नहीं किन्तु अगुंली को जोर से रगड़ने पर मल दिखने लग जाता है अथवा हाइड्रोजन और आक्सीजन अचाक्षुष है किन्तु आक्सीजन के दो परमाणु टूट कर एक हाइड्रोजन में जुड़ जाते है तो H.O जल चाक्षुष बन जाता है।

     

    वैस्त्रसिक और प्रायोगिक के भेद से बन्ध दो भेद वाला है। जिसमें पुरुष का प्रयोग अपेक्षित नहीं है वह वैस्त्रसिक बन्ध है जैसे स्निग्ध रूक्ष गुण के निमित से होने वाला बिजली, उल्का, मेघ आदि के विषयभूत बन्ध। तथा जो बन्ध पुरुष के प्रयोग के निमित से होता है। वह प्रायोगिक बन्ध है जैसे लाख और लकड़ी आदि का अजीव सम्बन्धी और कर्म-नोकर्म का जीव से साथ जीवाजीव सम्बन्धी प्रायोगिक बन्ध है। सूक्ष्मता दो प्रकार की है - अन्य ओर आपेक्षिक। परमाणु में अन्य सूक्ष्मत्व है तथा बेल, आँवला और बेर आदि में आपेक्षिक सूक्ष्मत्व है। स्थौल्य भी दो भेद रूप है - अन्त्य और आपेक्षिक। जगव्यापी महास्कन्ध में अन्य स्थौल्य है तथा बेर, अाँवला और बेल आदि में आपेक्षिक स्थौल्य है।

     

    इत्थ लक्षण और अनित्यं लक्षण के भेद से संस्थान दो भेद वाला है। जिसके विषय में 'यह संस्थान इस प्रकार का है' यह निर्देश किया जा सके वह इत्थं लक्षण संस्थान है। जैसे - वृत्त, त्रिकोण, चतुष्कोण आदि। जिसके विषय में इस प्रकार का है नहीं कहा जा सकता वह अनित्थ वाला सस्थान है - जेसे मेध आदि का आकर उत्कर, चूर्ण, चूर्णिका, प्रत्तर और अणुचटन के भेद से भेद के छह प्रकार हैं।

     

    जो प्रकार का विरोधी है तथा जिससे द्रष्टि में प्रतिबन्ध होता है वह तम कहलाता है | प्रकाश को रोकने वाले पदार्थो के  निमित्त से जो पैदा होती है वह छाया कहलाती है। जो सूर्य के निमित्त से उष्ण प्रकाश होता है उसे आतप कहते हैं। चन्द्रमणि और जुगनु आदि के निमित्त से जो प्रकाश पैदा होता है वह उद्योत है।

    • सुख, दु:ख, जीवन, मरण, शरीर, वचन, मन, प्राणापान ये सब पुद्गल द्रव्य के जीव पर उपकार हैं|

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    रतन लाल

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    द्रव्यानुयोग पर अध्ययन

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