उत्तरप्रदेश के ललितपुर जिले में स्थित देवगढ़ भारतीय संस्कृति एवं कला का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है। लगभग ३०० फीट ऊँची पहाड़ी पर स्थित किले और उसके भीतर निर्मित जैन देवालयों एवं देवमूर्तियों की दृष्टि से देवगढ़ की मान्यता संपूर्ण भारत में एक अद्धितीय कला स्थल के रूप में है।
देवगढ़ में मुख्यत: पाँचवी-छठी शताब्दी से १६ वीं-१७वीं शताब्दी के बीच भारतीय कला का अजस्र प्रवाह देखा जा सकता है। वस्तुत: देवगढ़ की जैन कला 'कला कला के लिये है' इस अवधारणा से आगे बढ़कर 'कला जीवन के लिये है' के भाव उजागर करती है। देवगढ़ में ४१ जैन मंदिर तथा असंख्य मूर्तियाँ अवस्थित है। इन मन्दिरों तथा मूर्तियों की प्रचुर संख्या, निर्माण की विभिन्न शैलियाँ शिल्प के अनूठे प्रयोग, कला वैविध्य तथा इनके निर्माण की लम्बी कालावधि के कारण देवगढ़ जैन मूर्तिकला तथा स्थापत्य का महत्वपूर्ण केन्द्र है।
देवगढ़ की जैन कला के विषय में अध्ययन के कुछ महत्वपूर्ण प्रयत्न भी हुए है, जिनमें जर्मनी के विद्वान डॉ० क्लाज ब्रुन की पुस्तक "दि जिन इमेजेज आफ देवगढ़" तथा डॉ भागचन्द्र भागेन्दु के शोध-ग्रन्थ देवगढ़ की जैन कला: एक सांस्कृतिक अध्ययन उल्लेखनीय है।
देवगढ़ स्थित विपुल पुरासम्पदा, मन्दिर, मूर्तियाँ, बेतवा नदी, घाटियाँ एवं वन्य जन्तु विहार आदि मिलकर देवगढ़ को न केवल तीर्थ स्थल बल्कि एक सुरम्य पर्यटन स्थल भी बनाते हैं।
बारह भावना
राजा राणा छत्रपति, हाथिन के असवार।
मरना सबको एक दिन, अपनी-अपनी बार।१।
दल बल देवी देवता, मात-पिता परिवार।
मरती बिरियां जीव को, कोऊ न राखन हार।२।
दाम बिना निर्धन दुखी, तृष्णा वश धनवान।
कबहूँना सुख संसार में, सब जग देख्यो छान।३।
आप अकेला अवतरे, मरे अकेला होय।
यो कबहूँ इस जीव का, साथी सगा न कोय।।४।।
हाँ देह अपनी नहीं, तहाँ न अपना कोय।
घर सम्पत्ति पर प्रगट ये, पर हैं परिजन लोय।।५।।
दिपै चाम-चादर मढ़ी, हाड़ पींजरा देह।
भीतर या सम जगत में, और नहीं धिन गेह।।६।।
मोह नींद के जोर, जगवासी घूमें सदा।
कर्म चोर चहुं ओर, सरवस लूटें सुध नहीं।७।
सतगुरु देय जगाय, मोहनींद जब उपशमैं।
तब कुछ बनहिं उपाय, कर्मचोर आवत रुकें।८।।
ज्ञान-दीप तप-तेल भर, घर शोधे भ्रम छोर।
या विधि बिन निकसें नहीं, बैठे पूरब चोर।९।
पंच महाव्रत संचरण, समिति पंच परकार।
प्रबल पंच इन्द्रिय विजय, धार निर्जरा सार॥१०।।
चौरह राजु उतुंग नभ, लोक पुरुष संठान।
तामें जीव अनादि तें, भरमत हैं बिन ज्ञान।११।।
धन कन कंचन राजसुख, सबहि सुलभकर जान।
दुर्लभ है संसार में, एक जथारथ ज्ञान।१२।।
जाचे सुर-तरु देय सुख, चिन्तत चिन्ता रैन।
बिन जांचेबिन चिन्तये, धर्मसकल सुख दैन।।१३।।