पृथ्वी तल बहुत दूर आकाश में, हमें सूर्य, चन्द्रमा, तारे आदि दिखाई पड़ते हैं। इनके द्वारा ही दिन और रात का विभाजन होता है। इनके स्वरूप और स्थिती के बारे में आधुनिक वैज्ञानिकों ने अनेक प्रकार की घोषणाएं की हैं जो प्राय: काल्पनिक एवं भ्रम में डालने वाली हैं। जैसे सूर्य आग का धधकता गोला है, पृथ्वी से सूर्य २१० गुना बड़ा है, चन्द्रमा की उत्पत्ति पृथ्वी से हुई है, चन्द्रमा पर सूर्य का प्रकाश गिर कर परावर्तित होता है इस कारण चन्द्रमा प्रकाशित होता है तथा वैज्ञानिक चन्द्रमा पर पहुंच गए है इत्यादि। जैनाचार्यों द्वारा प्रणीत ग्रंथों में इन सबका विस्तृत वर्णन किया गया है। यहाँ उपलब्ध ग्रन्थों के अनुसार संक्षेप में ज्योतिलॉक का वर्णन करते हैं।
सूर्य चन्द्रमा के विमान
सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और तारे-ये सब ज्योतिष निकाय के देव हैं। आकाश में दिखने वाले सूर्य चन्द्रमा आदि इन्ही देवों के विमान है। इन विमानों का आकार अर्ध गोलाकार होता है। अर्थात् जिस प्रकार गोले के दो खण्ड करके उन्हें उध्वमुख रखा जावें तो चौड़ाई का भाग ऊपर एवं गोलाई वाला भाग नीचे रहता है। इसी प्रकार उध्वमुख अर्धगोले के सदृश ज्योतिष देवों के विमान है। इन विमानों के नीचे का गोलाकार भाग ही हमारे द्वारा देखा जाता है। ये विमान पृथ्वीकायिक (चमकीली धातु) के बने हुए, अकृत्रिम है। सूर्य के बिम्व में स्थित पृथ्वीकायिक जीव के आताप नाम कर्म का उदय से सूर्यविमान मूल में ठन्डा होने पर भी उसकी किरणें गरम होती है। चन्द्र बिम्ब में स्थित पृथ्वीकायिक जीव के उद्योत नाम कर्म का उदय होने से चन्द्र विमान मूल में ठन्डा है एवं उसकी किरणें भी शीतल हैं। इसी प्रकार तारा आदि के विमानों में भी उद्योत नामकर्म का उदय जानना चाहिए।
सूर्य चन्द्र की गणना
सूर्य चन्द्र आदि एक - दो नहीं किन्तु असंख्यात (जिन्हे गिना न जा सके) हैं। एक राजू प्रमाण लम्बे और एक राजू प्रमाण चौड़े मध्यलोक में पूर्व पश्चिम धनोदधि वातवलय पर्यन्त सूर्यादि के विमान फैले हुए हैं। जम्बूद्वीप में दो सूर्य एवं दो चन्द्रमा है एक चन्द्रमा के परिवार में एक सूर्य, अठासी (88) ग्रह, अट्ठाईस (28) नक्षत्र एवं छयासठ हजार नौ सौ पचहत्तर कोड़ाकोड़ी (66975 कोड़ा कोड़ी) तारे होते हैं।
लवण समुद्र में चार चन्द्रमा अपने परिवार विमानों सहित है। धातकी खण्ड में बारह (12) चन्द्रमा कालोदधि समुद्र में ब्यालीस चन्द्रमा अपने सूर्यादि के विमानों के परिवार सहित होते हैं। इसके आगे मानुषोत्तर पर्वत के परभाग वाले पुष्करार्ध द्वीप के प्रथम वलय में एक सौ चौबालीस (144) चन्द्रमा परिवार सहित है एवं इस द्वीप में अंतिम वलय में इनकी संख्या (288) दो सौ अट्ठासी हो जाती है। आगे इनकी संख्या बढ़ते-बढ़ते अन्तिम स्वयम्भू रमण समुद्र तक असंख्यात हो जाती है।
सूर्य चन्द्रमा आदि का अवस्थान
पृथ्वी तल से सात सी नब्बे (790) योजन की ऊँचाई से लेकर नौ सौ (900) योजन तक की ऊँचाई में ज्योतिष मण्डल अवस्थित है। भूमि के समतल भाग से सात सौ नब्बे (790) योजन ऊपर, सबसे नीचे तारागण हैं, उनसे दस योजन ऊपर प्रतीन्द्र सूर्य और उससे अस्सी योजन ऊपर इन्द्र चन्द्रमा भ्रमण करते हैं। चन्द्रमा से तीन योजन ऊपर नक्षत्र और नक्षत्र से तीन योजन ऊपर बुध के विमान स्थित हैं। बुध ग्रह से तीन योजन ऊपर शुक्र, शुक्र से तीन योजन ऊपर बृहस्पति, उससे चार योजन ऊपर मंगल एवं मंगल से चार योजन ऊपर शनि ग्रह भ्रमण करता है। इस प्रकार सम्पूर्ण ज्योतिष मण्डल एक सौ दस (110) योजना नभस्थल में स्थित है।
सूर्य चन्द्रमा का गमन
ढाई द्वीप और दो समुद्र सम्बन्धी ज्योतिषी देव (विमान) मेरू पर्वत से ग्यारह सौ इक्कीस (1121) योजन छोड़कर मेरू पर्वत की प्रदक्षिणा करते हुए निरन्तर गमन करते हैं। इनसे बाहय क्षेत्र के ज्योतिषी देव अवस्थित हैं।
इन सूर्य और चन्द्रमा आदि को आभियोग्य जाति के देव खीचतें हैं। चन्द्र और सूर्य के पूर्व दिशा में चार हजार देव सिंह के आकर को धारण कर, दक्षिण में 4000 देव हाथी के आकार को धारण कर, पश्चिम में 4000 देव बेल के आकार को धारण कर एवं उत्तर में 4000 देव घोड़े के आकार को धारण कर ऐसे 16000 देव सतत् खींचते रहते हैं। इसी प्रकार ग्रहों को कुल 8000 देव, नक्षत्रों को 4000 देव एवं ताराओं को 2000 वाहन जाति के देव खींचते रहते हैं।