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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पाठ्यक्रम 14ब - जैन जीव विज्ञान - तिर्यच जीव

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    जो मन वचन काम की कुटिलता/वक्रता को प्राप्त हैं। प्राय: तिरस्कार को प्राप्त होते हैं वे जीव तिर्यञ्च कहलाते हैं। एकेन्द्रिय से लेकर चार इन्द्रिय तक के जीव नियम से तिर्यञ्च जीव कहे जाते हैं।

     

    एकेन्द्रिय जीव

    •  सामान्य पृथ्वी, पृथ्वी काय, पृथ्वी कायिक एवं पृथ्वी जीव
    1. सामान्य पृथ्वी - जिसे किसी जीव ने अभी तक अपना शरीर नहीं बनाया ऐसा पृथ्वी पिंड, सामान्य पृथ्वी कहा जाता हैं। स्वर्गों में स्थित उपपाद शय्या सामान्य पृथ्वी कही गयी हैं।
    2. पृथ्वी काय - जिसमें से पृथ्वी जीव निकल गया हो, ऐसा पृथ्वी पिंड पृथ्वी काय है यह भी अचेतन है जैसे गरम किया गया नमक
    3. पृथ्वी कायिक - पृथ्वी जीव सहित पृथ्वी पिंड को पृथ्वी कायिक जीव कहते है यह सचेतन है। जैसे खदान में पड़ा एवं आसपास दिखने वाला पत्थर।
    4. पृथ्वी जीव - पृथ्वी नाम कर्म से सहित, विग्रह गति में स्थित जीव पृथ्वी जीव है। विग्रह गति का अर्थ – नवीन शरीर प्राप्त करने के लिए होने वाली जीव की मोड़े वाली गति। इसी प्रकार से जल, अग्नि, वायु और वनस्पति में भी इन भेदों को लगा लेना चाहिए।
    • पृथ्वी कायिक जीव के शरीर का आकार मसूर के समान होता है। इसकी अधिकतम आयु बाईस हजार वर्ष एवं जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त है।
    • जल कायिक जीव के शरीर का आकार मोती के समान (जल की बिन्दू) तथा उत्कृष्ट आयु ७००० वर्ष, जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त है।
    • वायु कायिक जीव के शरीर का आकार पताका (ध्वजा) के समान तथा उत्कृष्ट आय ३००० वर्ष, जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त है।
    • अग्निकायिक जीव का आकार सूई की नोंक के समान तथा उत्कृष्ट आयु तीन दिन एवं जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त है।
    • वनपस्पति कायिक जीव का आकार अनेक प्रकार का है तथा उत्कृष्ट आयु १०,००० वर्ष, जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त है।

     

    द्वीन्द्रियादि जीव

    द्विइन्द्रिय जीव की उत्कृष्ट आयु बारह वर्ष एवं जघन्य आयु अन्र्तमुहूर्त की होती है। उत्कृष्ट अवगाहना बारह योजन प्रमाण शंख की होती है यह शंख स्वयम्भू रमण नामक अंतिम द्वीप में पाया जाता है।

    त्रीन्द्रिय जीव की उत्कृष्ट आयु उनचास दिन (४९) एवं जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त की होती है। उत्कृष्ट अवगाहना एक कोश प्रमाण चींटी की स्वयंभू रमण द्वीप में पाई जाती है।

    चतुरीन्द्रिय जीव की उत्कृष्ट आयु छह माह (६), जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होती हैं। उत्कृष्ट अवगाहना एक योजन प्रमाण भ्रमर (भौंरा) की होती है।

     

    पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च जीव

    पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च के भोगभूमिज और कर्म भूमिज की अपेक्षा दो भेद हैं। भोगभूमि में जन्म लेने वाले तिर्यञ्च भोग भूमिज कहे जाते हैं।


    भोगभूमि तिर्यञ्च मुलायम हलुवे जैसी घास खाकर सुख पूर्वक निवास करते हैं। वे मरकर स्वर्ग ही जाते हैं परिणामों की निर्मलता होने से शेर और गाय सभी प्रीति पूर्वक रहते हैं। कर्म भूमि तिर्यञ्च प्राय: दु:खों को सहन करते है, बोझा ढोना आदि कार्य करते हैं। घास, पत्ती आदि खाकर पेट भरते हैं। कुछ क्रूर तथा कुछ सरल परिणामी होते हैं।
    तिर्यञ्चों की उत्कृष्ट आयु तीन पल्य, जघन्य आयु अन्तमुहूर्त है।''पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों में उत्कृष्ट अवगाहना महामत्स्य की' १००० योजन लम्बाई, ५०० योजन चौड़ाई और २५० योजन मोटाई प्रमाण' होती है।
    कर्मभूमिज तिर्यच्चों के जलचर, थलचर और नभचर की अपेक्षा तीन भेद होते हैं। जल में रहने वाले जीव जैसे मछली, मगर, मेढ़क, कछुवा आदि जलचर जीव हैं। पृथ्वी पर रहने वाले गाय, घोड़ा, शेर आदि थलचर जीव है एवं आकाश में उड़ने वाले कोयल, चिड़िया, तोता आदि नभचर जीव हैं।
    मायाचारी करना, धर्मोपदेश में मिथ्या बातों को मिलाकर उनका प्रचार करना, शील रहित जीवन बिताना, जाति-कुल में दूषण लगाना, विसंवाद में रुचि होना, सद्गुण लोप और असद्गुणों ज्ञापन करना इत्यादि परिणामों से जीव तिर्यच्च गति में जन्म लेता है एवं जो पापी जिनलिंग को ग्रहण करके संयम एवं सम्यक्त्व भाव छोड़ देते हैं और पश्चात् मायाचार में प्रवृत होकर चरित्र को नष्ट कर देते हैं, जो मूर्ख मनुष्य कुलिंगियों को नाना प्रकार के दान देते हैं या उनके भेष को धारण करते हैं, वे भोगभूमि में तिर्यच होते हैं।


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