आतंकवाद परिवर्तित हुआ, सेठ परिवार और वे दोनों परस्पर आश्रित हो आगे बढ़ रहे हैं। कुम्भ के मुख से मंगल कामना निकलती है और इधर सरिता तट भी कुम्भ के स्वागत हेतु आतुर हो रहे हैं। तट के निकट पहुँचते ही कुम्भ ने तट का चुम्बन लिया और सब नदी से बाहर निकल आते हैं, कमर की रस्सी खोली गई, रस्सी ने सबसे क्षमा माँगी सो परिवार ने भी कृतज्ञता व्यक्त की, उपादान की योग्यता और निमित्त की कृपा का परिचय । परिवार कुम्भ को छने जल से भर आगे बढ़ता है कि वही पुराना स्थान, जहाँ कुम्भकार पुनः माटी लेने आया है। परिवार सहित कुम्भ ने कुम्भकार का अभिवादन किया। धरती प्रसन्न होती है माटी की इस विकासशील विकसित दशा देखकर, आदिम सर्ग, द्वितीय सर्ग, तृतीय सर्ग, अन्तिम सर्ग और वर्गातीत अपवर्ग की बात । धरती की भावना सुनकर कुम्भ सहित सबने कुम्भकार के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की सो नम्र भाव से कुम्भकार ने यह सब ऋषि सन्तों की कृपा बताकर, कुछ ही दूर बैठे साधु की ओर सबका ध्यान आकृष्ट कराया। सबने गुरु चरणों के निकट पहुँचकर प्रणाम किया, फिर पादाभिषेक कर गंधोदक उत्तमांग पर लगाया और हाथ जोड़कर गुरुकृपा की प्रतीक्षा में बैठ गए, कुछ पल बीते कि गुरुदेव ने आशीष का हाथ उठाया, जिसमें भाव भरा था शाश्वत सुख का लाभ हो। इस पर आतंकवाद ने कहा - स्वामिन् सांसारिक दुख और क्षणिक इन्द्रिय सुख तो अनुभूत हैं, किन्तु अक्षय सुख पर विश्वास नहीं हो रहा है। यदि आप दिखा सकें तो हम भी आप जैसी साधना कर सकें। हमारी भावना पूरी हो, ऐसा वचन दें आप। दल की धारणा सुन गुरुदेव ने बताई - गुरु को दिए वचन की बात, श्रमण साधना और अक्षय सुख के विषय में अन्तिम समाधान और महामौन में डूबते सन्त और माहौल को निहारती मूकमाटी।