आतंकवाद के अवतार का कारण, गुपचुप स्वर्ण कलश की सहचरों के साथ मन्त्रणा, आतंकवादी हमले के लिए दिन, समय निश्चिता। इसी बीच पात्रों में ही असन्तुष्ट दल का निर्माण, जिसकी संचालिका है स्फटिक की झारी और उसके पक्ष में हुए अनेक चमचे, प्याले, प्यालियाँ। झारी का उद्बोधन स्वर्ण कलश के लिए-माँ सत्ता के चरणों में नमन करो, तर जाओगे। झारी की बात सुन और उत्तेजित हुआ स्वर्ण कलश जोरदार गर्जना करता है-एक को भी नहीं छोडूंगा।
झारी ने माटी के कुम्भ को संकेत दिया सो कुम्भ के निर्देशानुसार कुम्भ को साथ ले सेठ परिवार प्रासाद के पिछले पथ से निकलता हुआ सघन वन में प्रविष्ट होता है। तरुवर की छाँव में आश्रय पा शान्ति का वेदन करता है, तभी वंश पंक्तियों द्वारा कुम्भ के पदों में वंश मुक्ता की वर्षा होती है। इसी बीच सिंह से सताया हुआ हाथियों का समूह परिवार की अभय छाँव में आता है और गजमुक्ता प्रदान करता है, धरती की गोद में गिरे वंश मुक्ता और गजमुक्ता एक दूसरे में मिलते हैं।
आगे चलने के लिए परिवार उठता है, कुछ कदम आगे बढ़ने पर पीछे से आतंकवाद का आना, दल की काया-माया की व्याख्या, संपुष्ट देह का कारण और ध्येय। गजदल परिवार को घेर लेता है। भयंकर चिंघाड़ से धूल बन भू पर गिरती वामियों से निकलते अनगिनत सर्प, परिवार को निर्दोष देख प्रधान सर्प सब सर्पो से कहता है - आतंकवाद को काटना नहीं सिर्फ शह देना है, प्राणदण्ड की समीक्षा। भयभीत हुआ आतंकवाद वनी में जा छिपा, नाग-नागिन ने कही उरग शब्द की सार्थकता, पदवालों की समीक्षा और नागफणों से नागमुक्ता का अर्पण।