सेठजी द्वारा गृह चैत्यालय में जिनेन्द्र भगवान् की प्रतिमा का अभिषेक, प्रक्षालन, अष्टमङ्गल द्रव्य से पूजन, प्रयोजन, भव का किनारा। अतिथि चर्या का समय, दाताओं के बीच वार्ता, सेठ परिवार का अतिथि पड़गाहन हेतु कलश, श्रीफलादि लिए खड़े होना, अतिथि का दर्शन जय-जयकार, पीछे छूटे प्रांगणों की दशा, पात्र द्वारा दाता की परख, दाता का एक गुण विवेक भी ।
कुम्भ ने सेठ को सचेत किया दाता-पात्र की समीक्षा, बादल दल विमल क्यों ? सेठजी का संयत होना, पात्र का प्रांगण में आना, रुकना, प्रदक्षिणा, नवधाभक्ति का सूत्रपात, पात्राभिषेक माटी के कुम्भ से, गन्धोदक मस्तक पर, पूजन पंचांग-प्रमाण आहार जल ग्रहण की प्रार्थना।
दोनों हाथ धो-अर्हन्त भक्ति में डूबता सन्त, आसन पर खड़ा होना, क्षुधा की मीसांसा, इन्द्रियाँ खिड़कियाँ तो पुरुष भोक्ता । माटी के कुम्भ से जल देने पर पात्र की अंजुलि खुलना। श्रमण की वृत्ति गर्तपूरण, गोचरी, अग्निशामक, भ्रामरीवृत्ति सब वृत्तियों में महावृत्ति । कुम्भ और करों की परस्पर कृतज्ञता, पाणि-पात्र ही सत्पात्र ।