झाड़ियों में छुपा आतंकवाद निन्दा की दृष्टि से बाहर झांक रहा है, अपनी हार से उच्छृखल हुआ, मंत्रित नीबू आकाश में उछालता है तुरन्त घनी-घनी मेघों की घटाएँ, आँधी तूफान, बिजली की चमक और मूसलाधार वर्षा प्रारम्भ। इधर गजदल द्वारा परिवार का रक्षण, नदी तट पर पहुँचा परिवार नदी का उफान देख लौटने का मन बनाता है तभी कुम्भ लेता है आतंकवाद को नष्ट करने का दृढ़संकल्प। निर्भय हो कुम्भ में तथा अपनी-अपनी कमर में रस्सी बाँध नदी में कूदने का निर्देश, बन्धन नहीं स्वतन्त्रता की बात कुम्भ द्वारा। परिवार द्वारा निर्देश का अनुकरण, नदी में कूदा, डूबा परिवार ऊपर मुख मात्र दिख रहे हैं। जलीय जन्तुओं की वृत्ति में परिवर्तन, जल में उल्टी क्रांति, उफनती नदी परिवार के गालों पर तमाचा मारती, नाली-नदी संज्ञा की सार्थकता कहती है। नदी मुख से स्वयं की प्रशंसा सुन सेठ कहता है-धरणी को हृदय में धारण कर अपनी करनी सुधारो। सेठ की समालोचना सुन लोहित हो नदी, भंवरदार लहरों में डुबाने का प्रयास। परिवार का धैर्य घट ना जाए इसीलिए कुम्भ ने नदी को ललकारा, महामत्स्य ने मत्स्य मुक्ता प्रदान किया, जिसके परिणाम स्वरूप नदी का उफान शान्त हुआ, लगभग आधी यात्रा हो चुकी है प्रसन्नचित्त है कुम्भ।