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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • 8. मुक्ति : विकल्पों से

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    प्रभु की प्रार्थना, प्रार्थना में लीनता, ध्यान रूपी अग्नि तथा ज्ञान मार्ग की बात कुम्भ के मुख से सुन अग्नि कहती है बीच में ही, मुझे भवों-भवों की स्मृति है, बहुतों से मिली हूँ, साधु संतों की संगति की है मैंने, फिर यह अनुभव हुआ है कि ध्यान के केन्द्र खोलने मात्र से ध्यान में केन्द्रित/लीन होना संभव नहीं है। ध्यान की बातें करना और ध्यान से बात करना अर्थात् ध्यान धारण करना इन दोनों में बड़ा अंतर है। लो ध्यान के सम्बन्ध में ही आधुनिक चित्रण प्रस्तुत है -

     

    "इस युग के

    दो मानव

    अपने आपको

    खोना चाहते हैं -

    एक

    भोग-राग को

    मद्य-पान को

    चुनता है;

    और एक

    योग-त्याग को

    आत्म-ध्यान को

    धुनता है।

    कुछ ही क्षणों में

    दोनों होते

    विकल्पों से मुक्त।

    फिर क्या कहना !

    एक शव के समान

    निरा पड़ा है,

    और एक

    शिव के समान

     खरा उतरा है।" (पृ. 286)

    इस युग के दो मानव एक भोगी दूसरा योगी। दोनों कुछ समय के लिए अपने आपको खोना चाहते हैं, संसार के विकल्पों से मुक्त होना चाहते हैं। इसके लिए भोगी भोग वस्तु स्त्री आदि को तथा शराब आदि नशीली वस्तु को चुनता है, स्वीकार करता है और योगी भोग को त्याग कर आत्मध्यान में लीन होता है उसी ओर बार-बार पुरुषार्थ करता है कुछ ही समय में दोनों ही हो जाते हैं विकल्पों से मुक्त। कुछ समय पश्चात् परिणाम यह निकला, भोगी शव यानी मुर्दे के समान शक्तिहीन हुआ, चेतना शून्य पड़ा मिलता है तो योगी भगवान् के समान, शुद्धत्व को प्राप्त हो, परम आनंद की अनुभूति में लीन-जागृत मिलता है।

     

    199.jpg



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