इस धूम्र भक्षण का कारण यह भी है कि -कुम्भ जानना चाहता था कि मुझमें अग्नि को पचाने की क्षमता है की नहीं। धूम्र भक्षण करते हुए भी कुम्भ की जिह्वा ने अरुचि का अनुभव नहीं किया, अतः धूम्र का वमन (उल्टी) भी नहीं हुआ क्योंकि -
"वमन का कारण और कुछ नहीं,
आन्तरिक अरुचि मात्र।
इससे यही ज्ञात होता है कि
विषयों और कषायों का वमन नहीं होना ही
उनके प्रति मन में
अभिरुचि का होना है।" (पृ. 280)
वमन/त्याग का मूल कारण मन में अरुचि, ग्लानि है। पञ्चेन्द्रिय के विषयों का त्याग नहीं होना, कषायों का कम नहीं होना यह बात बताता है कि मन में अभी विषय-कषायों के प्रति राग, श्रद्धा बनी हुई है। विषय-कषायों का सही स्वरूप ज्ञात होते ही, उनमें अरुचि पैदा होनी चाहिए और अरुचि होते ही उनका त्याग भी होना ही चाहिए। अन्यथा वस्तु स्वरूप का ज्ञान, यथार्थ ज्ञान नहीं माना जा सकता है।
धीरे-धीरे धूम्र उठना बंद हो गया। अवा में धूम्र रहित अग्नि दिखाई पड़ने लगी, अग्नि की उष्णता उत्कृष्टता को प्राप्त हुई। अग्नि के स्पर्श होने से कुम्भ का शरीर जलता हुआ काला पड़ गया जबकि उसकी आत्मा निर्मल हो सहज शान्ति का अनुभव करने लगी।
अग्नि का स्पर्श होते ही कुम्भ की स्पर्शन इन्द्रिय ने कुम्भ से पूछा यह कौन-सा स्पर्श है - सो कुम्भ ने जवाब दिया यह वह शुद्ध स्पर्श है, जिसका अनुभव बिना जले, बिना तपे संभव नहीं। इस संदर्भ में कुम्भ की जिह्वा ने भी यह घोषणा कर दी कि - जिन बुद्धिमानों की यह धारणा है कि अग्नि में रस गुण नहीं है सो गलत है। क्योंकि मैंने इसका अनुभव/स्वाद लिया है और अनुमान से भी यह सिद्ध है कि जब धूम्र का स्वाद आ सकता है तो अग्नि का स्वाद जिह्वा को क्यों नहीं आएगा। किन्तु इसका स्वाद उसी को आएगा जो जीने की इच्छा से ही नहीं, किन्तु मृत्यु के भय से भी ऊपर उठा हो। क्योंकि -
"रसनेन्द्रिय के वशीभूत हुआ व्यक्ति
कभी भी किसी भी वस्तु के
सही स्वाद से परिचित नहीं हो सकता,
भात में दूध मिलाने पर
निरा-निरा दूध - भात का नहीं,
मिश्रित स्वाद ही आता है,
फिर, मिश्री मिलाने पर......तो
तीनों का ही सही स्वाद लुट जाता है!" (पृ. 281)
जो जिह्वा इन्द्रिय का लोलुपी है, वह किसी भी वस्तु का सही स्वाद नहीं जान पाता है, क्योंकि वह एक वस्तु में दूसरी वस्तु मिलाकर ही खाता है फिर किसी एक वस्तु का सही स्वाद कैसे आवे? जैसे भात में दूध मिला देने पर दूध और भात का अलग-अलग स्वाद नहीं आता अपितु मिला-जुला ही स्वाद आता है फिर शक्कर और मिला दी जावे तो तीनों का असली स्वाद ही समाप्त हो जाता है ।