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सोशल मीडिया / गुरु प्रभावना धर्म प्रभावना कार्यकर्ताओं से विशेष निवेदन ×
नंदीश्वर भक्ति प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • 53. आमंत्रित हुआ : आतंकवाद

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    अन्त-अन्त में बिना छने तेल के कारण भभकते दीपक के समान आवेश में आकर ईर्ष्या वश स्वर्ण कलश ने परिवार सहित सेठ को, पीठ पीछे वैद्य दल को और माटी के कुम्भ को भी बहुत कुछ कह सुनाया परन्तु सबने शान्त भाव से सब कुछ सुन लिया, माहौल पूर्ववत् ही शान्त बना रहा। वैसे भी क्षमा के आगे क्रोध ज्यादा देर तक टिक नहीं सकता। जिसे सर्प काटता है वह मर भी सकता है और नहीं भी, उसे जहर चढ़ भी सकता है और नहीं भी किन्तु काटने के बाद सर्प अवश्य मुर्च्छित हो जाता है।

     

    मूच्छित सर्प-सी दशा स्वर्ण कलश की हो रही है, उसी का प्रभाव छोटी-छोटी सोने-चाँदी की कलशियों पर भी पड़ रहा है। कुछ समय तक शान्त वातावरण, मौनी माहौल चलता रहा फिर सौम्य भावों से भरे कुम्भ ने स्वयं स्वर्ण कलशी से कहा कि-ओरी कलशी! तू कल जैसी सुन्दर, कमनीयता वाली, मधुर मुस्कान लिए नहीं दिख रही है। लगता है तेरी बुद्धि सही काम नहीं कर रही है, तू तेज रहित, छोटी सी मुख मुद्रा ले, यहाँ अकेली काया ले पड़ी है, भले तू कल की नकल-सी कर रही है पर आज कहाँ दिख रही है तू कल........सी रे कलशी !

     

    कुम्भ द्वारा व्यंग्यात्मक शब्द सुन, अपने को हँसी का पात्र समझ मूल्यहीन, उपेक्षित मान भीतर ही भीतर जलता-घुटता हुआ स्वर्ण कलश बदले के भाव से भर गया। बदले के भाव से भरे स्वर्ण कलश ने परिवार सहित सेठ और कुम्भ को नष्ट करने हेतु षड्यन्त्र रचा आतंकवाद को आमंत्रित करने का दिन और समय भी निश्चित हुआ। यह बात भी जानना होगा कि-आतंकवाद का जन्म कैसे होता है यह निश्चय है कि-

     

    "मान को टीस पहुँचने से ही,

    आतंकवाद का अवतार होता है।

    अति-पोषण या अतिशोषण का भी

    यही परिणाम होता है,

    तब

    जीवन का लक्ष्य बनता है, शोध नहीं,

    बदले की भाव..... प्रतिशोध!" ( पृ. 418)

     

    मान को धक्का लगते ही, अतिपोषण-प्रोत्साहन, सम्मान, धन आदि होने से तथा अतिशोषण, दुत्कार-तिरस्कार, धनहीनता (गरीबी) होने से ही आतंकवाद का उदय होता है तब जीवन का लक्ष्य शोध, कुछ नव निर्माण से बदलकर प्रतिशोध, दूसरों को कष्ट पहुँचाना, उपद्रव करना ही बन जाता है, जो कि महान् अज्ञानता और दूरदर्शिता के अभाव का प्रतीक है। जिसका परिणाम मात्र दूसरों के लिए ही नहीं किन्तु स्वयं के लिए भी गलत, घातक सिद्ध होता है।

     

    इधर स्वर्ण कलश ने अपने साथियों और सेवकों, अनुचरों से मिलकर इस विषय में गुप-चुप मन्त्रणा की, इस बात की खबर परिवार जनों को नहीं लग  पाई सो ठीक ही है।

     

    "सभ्यों की नासिका वह

    भूखी रह सकती है,पर

    भूल कर स्वप्न में भी

    दुर्गन्ध की ओर जाती नहीं।" (पृ. 418)

     

    जो सज्जन व्यक्ति होते हैं, वे भले ही किसी का भला कर पावें अथवा नहीं किन्तु भूलकर भी कभी-किसी का बुरा नहीं सोचते भौंरा और मक्खी दोनों  गंध का सेवन करना चाहते हैं किन्तु जिस प्रकार मक्खी मल, मूत्र, कफ और माँस आदि में फँसकर मर जाती है उस प्रकार सुगन्ध से भरे फूलों की गन्ध छोड़कर भौंरा कभी भी इन गन्दें पदार्थों पर नहीं बैठता।



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