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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • 56. आया दल : आतंकवाद का

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    जब भ्रम दूर हुआ, श्रम टलते ही तन-मन की स्वस्थ्यता होते ही सेठ परिवार आगे चलने के लिए उठ खड़ा हुआ कि-पीछे से गरजती हुई जन दल के मुख से निकली कानों को बहरा करती, हिंसा ही जीविका है जिसकी, आक्रामक भाव को लिए भयंकर ध्वनि सुनाई पड़ी। अरे कायरो पापी! धर्म के नाम पर अधर्म करने वालों ठहरो, भाग कर कहाँ जाओगे अब, शरीर का मोह छोड़ो और मरने के लिए तैयार हो जाओ। परिवार ने मुड़कर देखा तो दिखा आतंकवाद का दल, हाथियों को भी हताहत अर्थात् मृत और घायल करने वाला, क्रोध से भरे जिनके होठों से खून टपक रहा है, शरीर गठीला और मन हठीला बना है जिनका काले-काले लम्बे बाल वाले, आँखें आग-सी उगल रही हैं, त्रिकोणी तिलक कुमकुम का, काली काया, उठी हुई मूँछो वाले, जिनकी बाहुओं में निम्बू फल बन्धे हैं, जिनके अंग-अंग से क्रूरता झलक रही है, ऐसा है आतंकवाद का दल। प्रायः सम्पुष्ट शरीर दया छोड़, हिंसक वृत्ति से ही बनता है तभी सन्तों ने कहा है कि -

     

    275.jpg

     

    "अरे देहिन्!

    घुती-दीप्त-संपुष्ट देह

    जीवन का ध्येय नहीं है,

    देह-नेह करने से ही

    आज तक तुझे

    विदेह-पद उपलब्ध नहीं हुआ।" (पृ. 429)

     

    हे देहधारी मानव! जीवन का लक्ष्य सुन्दर, कांतिवान, हष्टपुष्ट शरीर का निर्माण करना नहीं होना चाहिए, क्योंकि देह के प्रति राग, मोह करने का ही यह परिणाम है कि आज तक तुझे देह से रहित, देहातीत सिद्धावस्था की प्राप्ति नहीं हुई है।

     

    दया से रहित दुष्टों द्वारा, दयालीन शिष्टों पर आक्रमण होता गजदलों ने भी देखा और सोचते हैं वे, आर्यों का प्रथम कर्तव्य परिवार की रक्षा करना है, सो गजदल परिवार को बीच में कर चारों ओर से खड़ा हो गया। हाथियों का समूह जोरदार चिंघाड़ करने लगा, सो इस गर्जना से पूरा आकाश मण्डल गूंज उठा, धरती का धैर्य हिल उठा, पर्वत भी घबरा गए, पंछी भयभीत हो दूसरों के घोंसलों में घुस गए, अजगरों की गाढ़ निद्रा टूट गई, लोगों को बुखार-सा चढ़ गया अर्थात् शरीर तप गया, हिरण-दल मार्ग से भटक सिंह के सम्मुख जा खड़ा हुआ, सर्पो की वामियाँ धूल बनकर धरती पर गिर पड़ी, जिससे क्रूर विषधर बाहर निकल आए और फण उठाकर बाधक तत्त्व को देख रहे हैं, तुरन्त ही विषधरों को विप्लव (उत्पात, उपद्रव, विपत्ति) का मूल कारण ज्ञात हुआ।



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