इधर नीचे से धरती भी आँखें खोलकर इस घटना को देख रही थी। बदलियों के भावों में निर्मलता आई, धरती के स्नेह का पात्र बनी। धरती के हाथ अनगिण कणों के रूप में ऊपर पहुँचते हैं और बदलियों के आँखों से निकलने वाले आँसुओं को प्रेम से सहलाते हैं, आँसू की बूंदें और धूल के कण आपस में एक दूसरे से गले मिले।
जल को जड़ता से मुक्ति मिली और जल मोती बनकर मेघमुक्ता के रूप में परिवर्तित हुआ। यह सब कार्य किसके पुण्य से, किसकी सहायता से, किसकी भावना से, किसकी प्रेरणा से, किसके आश्रय में हुआ, यह सब शंका स्वयं ही नष्ट हो जाती है और माटी के कच्चे घड़ों पर कुम्भकार के प्रांगण में मेघमुक्ता की वर्षा होती है। पूजक मोती, पूज्य धरती के चरणों में नमन करते हैं।