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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • सोपान 17. बादलों का प्रयास : अन्त में हार

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    धरती की बढ़ती कीर्ति, सागर द्वारा लौटी बदलियों को डाँट, स्त्री जाति का स्वभाव बताना। सागर का धरती के प्रति बैर-वैमनस्क भाव देख प्रभाकर ने सागर तल के रहवासी तेज तत्त्व को सूचित किया, परिणाम स्वरूप बड़वानल द्वारा सागर पर आक्रोश व्यक्त, धमकी बदले में सागर का जवाब । पुनः सागर द्वारा तीन बादलों को प्रशिक्षित कर गगन में भेजना, तीनों के तन-मन की मीसांसा, रूप-स्वरूप की व्याख्या।

     

    बादलों का प्रभाकर से भिड़ना तथा सागर का पक्ष लेने हेतु सलाह देना अन्यथा शीघ्र ही ग्रहण की व्यवस्था होगी धमकी देना। प्रभा-मण्डल द्वारा जवाब-गन्दा नहीं बन्दा ही संसार से भयभीत होता है। तेज हुए सूर्य को देख सागर ने राहु को याद किया, मन चाही-मुँह माँगी राशि दे राहु को गुमराह कर दिया। राहु ने साबुत ही सूर्य को निगल लिया । सूर्य ग्रहण होने पर पृथ्वी- पृथ्वीवासियों की दशा ।

     

    प्रलयकारी वर्षा की पूरी सम्भावना देख माँ धरती से आशीर्वाद ले, धरती के कण-कण आकाश में ऊपर उड़ जाते हैं, बादलों से संघर्ष करने हेतु । जल-कणों को सुखाने का प्रयास, जलकण भू-कणों का टकराव, इन्द्रधनुष का अवतरण, लेखनी की भावना, इन्द्र का पुरुषार्थ, बिजली का काँपना, ओला वृष्टि, लेखनी द्वारा सौर मण्डल और भू मण्डल की तुलना, अन्त में बादलों-ओलों की हार तथा भू-कणों की जीत।



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