कुम्भकार की अनुपस्थिति प्रांगण में मोतियों की वर्षा, राजा का मण्डली सहित आना । मण्डली द्वारा मुक्ता को उठाने का प्रयास, मुक्ता को छूते ही बिच्छू के डंक लगने जैसी छटपटाती मूर्छित हुई मण्डली, कीलित हुआ राजा, आसपास जुड़ा जमाने का जमघट और शिल्पी का वापस लौटना, बाहर से प्रांगण का दृश्य देख विस्मय, विषाद, विरति की परिणति। भीतर प्रवेश कर मंत्रित जल से सबकी मूच्र्छा दूर करना, राजा से क्षमायाचना और मुक्ता राशि स्वीकारने का सविनय अनुरोध ।
इधर अपक्व कुम्भ द्वारा राजा पर व्यंग्य, राजा के मन में लज्जा, रोष और घटना की यथार्थता का चिन्तन । कुम्भकार द्वारा कुम्भ को कुलीनता का परिचय देना, जिसे सुन राजा की मति का उफान कम होना । मुक्ता ग्रहण की स्वीकृति, बोरियों में भरी मुक्ता राज प्रासाद की ओर।