आगे मातृ शब्द की सार्थकता को भी समझें - सन्त पुरुष प्रमातृ शब्द का अर्थ ज्ञाता बताते हैं, जानने की शक्ति वह मातृ तत्त्व के पास ही है, इसलिए सबको जन्म देने वाली, सबकी मूल आधार मात्र मातृतत्त्व ही है, अन्य कोई पिता या पुरुष नहीं। ज्ञाता के अभाव में ज्ञेय (जानने योग्य)-ज्ञायक (जानने वाला) सम्बन्ध ही समाप्त हो जाएगा। ऐसी स्थिति में वास्तविक सुख शान्ति किसे, क्यों और कैसे मिलेगी? इसीलिए इस जीवन में सदा माता का सम्मान होना चाहिए, उसका गुण-गान सदा होना चाहिए। धन्य है मातृ शक्ति। अनादिकाल से काम की आग में जलने वाले पुरुष समाज को स्त्री सुनाती/समझाती आ रही है।
"स्वीकार करती हूँ ...... कि
मैं अंगना हूँ
परन्तु
मात्र अंग ना हूँ .......
और भी कुछ हूँ मैं.....!" (पृ. 207)
मैं इस बात को मानती हूँ कि मैं अंगना, तुम्हारे लिए भोग्या हूँ किन्तु मात्र अंग (शरीर) ही नहीं हूँ और भी कुछ हूँ मैं। शरीर के भीतर झाँकने का प्रयास करो। शरीर के सिवा और भी कुछ माँगने का प्रयास करो, जो मैं देना चाहती हूँ क्या तुम लेना चाहोगे? सो अनादिकाल से शाश्वत कर्मकलंक रहित, प्रकाशमान, भार रहित चेतना हूँ मैं, उसका आभार मानो, उसकी शरण लेने का पुरुषार्थ करो, जो सही-सुख का साधन है।