बादलों की कठोर, कर्कश, कर्णकटुक घोर गर्जना से दशों दिशाएँ बहरी हो गईं, आकाश का तेज फीका पड़ गया और सबको सहारा देने वाला प्रकाशवान सूर्य, बेसहारा बना बादलों में लीन हुआ। जिससे प्रभाकर की किरणों का समूह भी प्रभावित हो फीका पड़ा कुछ कहता है बादलों से -अरे ! ठगों पापखण्ड का पक्ष लेने वालों, रहस्य की बात समझने में तुम्हें अभी समय लगेगा, समझना चाहो तो सुनो -
"गन्दा नहीं,
बन्दा ही भयभीत होता है
विषम-विघन संसार से -
और,
अन्धा नहीं,
आँख-वाला ही भयभीत होता है
परम-सघन अन्धकार से।" (पृ. 232)
जिसका जीवन पाँच पापों की कीचड़ से लिप्त है वह नहीं, अपितु प्रभु भक्ति में लीन रहने वाला पवित्र मानव ही, संसार की बुराइयों से, नरकादि दुर्गतियों से डरता है। नेत्रहीन नहीं, किन्तु आँख वाला मनुष्य ही घोर अन्धकार से डरता है। सफेद स्वच्छ वस्त्र पहनने वाला ही गंदगी, दाग लगने से भयभीत होता है जिसने गंदा, काला वस्त्र पहना हो उसे गंदगी से क्या भय?
हिंसा रूप परिणामों को नष्ट करना हिंसा नहीं अपितु परम अहिंसा धर्म की पूजा करना-'अहिंसा' ही है और हिंसा करने वाले की हिंसा करना अथवा उसकी प्रशंसा, सराहना करना नियम से अहिंसा धर्म की क्रूर हत्या है। बुद्धि, ज्ञान पूर्वक कार्य करना ही धरती का पांडित्य है, प्रशंसनीय गुण है। मात्र जड़ में लीन होना, जड़ की चाह रखना ही समुद्र की कायरता, भीरूता है।