लेखनी द्वारा प्रवचन कला परवान वक्ता और श्रोता की मिसांसा, शिल्पी द्वारा माटी को रौंदने की क्रिया प्रारम्भ करना। हाथ-पैर का कर्तव्य क्षेत्र, दाहिना पैर का अचेत हो माटी को रौंदने हेतु असमर्थन। दूसरे पद द्वारा प्रभु से प्रार्थना माँ माटी को रौंदना संभव नहीं। इस क्षण माटी की मनोदशा, म्लान बना शिल्पी का मन, उसी के साथ हुए मुख, रसना, नासिका, आँखें और सभी अंग-उपांग। मौन से बड़ा कौन, मौन का कथन, आस्था, निष्ठा, प्रतिष्ठा, प्राण-प्रतिष्ठा, संस्था, और सच्चिदानंद संस्था का विकास अव्यय दशा की प्राप्ति, आस्था की पकड़। शिल्पी द्वारा चेतन पक्ष का स्मरण, तन, मन, वचन रूप प्रकृति का पुरुष को सहयोग कितना ? धोखा, फिर भी कुछ पाने की आस। प्रकृति ने भी अपनी बात रखी-प्रकृति नहीं पापपुंज पुरुष है। किस पर किस का नियन्त्रण हो समझाते हुए चेतन सक्रिय होता है, उसके साथ तन भी सक्रिय हो, माटी की रौदन क्रिया प्रारम्भ होती है। माटी की मृदुता ने कहा पूरा चल कर विश्राम करो सो शिल्पी का तन मन पुनः स्फूर्ति से जुट जाता है अपने काम में।