शिल्पी के समक्ष अपनी बात नहीं बनते, अपनी चाल नहीं चलते देख हास्य रस ने मुख मोड़ लिया और अपने साथी रौद्र रस को याद किया जो कि माटी के बहुत भीतर, गहरे में उबल रहा था, क्रूर-दया रहित भयंकर नाग के समान काला था। हास्य रस की पराजय सुन उसका पित्त भड़क उठा, मन क्रोध से भर फूलने लगी, नाक से लाल-लाल धूम्र मिश्रित क्रोध की लपटें निकलने लगीं।
“नाक में दम कर रक्खा” कहावत ठीक ही लग रही है, क्योंकि क्रोध का भंडार नाक में ही छुपा होता है, इसमें थोड़ा भी सन्देह नहीं भीतर बारुद भरा हो और बम की बत्ती पर जलती हुई अगरबत्ती और लगा दी जाए तो बम फूटता ही है वैसी ही दशा रौद्ररस की प्रकट हो रही है। सात्विक गुणों का विनाश, तामसिक और राजसिक गुणों की अधिकता यहाँ देखी जा रही है।
शिल्पी यह सब देख रहा है और चन्द्रमा के समान प्रसन्न मुद्रा में, निभौंकता के साथ रौद्र से कहता है कि-अब अपना ज्यादा परिचय मत दो, हम तुम्हारी प्रवृत्ति जानते हैं किन्तु इतना जरूर याद रखो
"रुद्रता विकृति है विकार
समिट-शीला होती है
भद्रता है प्रकृति का प्रकार
अमिट - लीला होती है।" (पृ. 135)
तुम जो अपना रूप दिखा रहे हों, यह आत्मा का स्वभाव नहीं है। इसका प्रभाव कुछ समय के लिए पड़ सकता है, लेकिन इससे तुम्हारा अपना जीवन ही शीघ्र नष्ट हो जाएगा। इसलिए रुद्रता छोड़ भद्रता सरलता को अपनाओ, क्योंकि सरलता आत्मा का स्वभाव है, जो कभी भी नष्ट नहीं होता, शाश्वत होकर शाश्वत पद दिलाने में कारण बनता है। और क्या तुमने यह सूक्ति नहीं सुनी?
"आमद कम और खर्चा ज्यादा, लक्षण है मिट जाने का।
कूबत कम और गुस्सा ज्यादा, लक्षण है पिट जाने का।।"
अर्थात् आमदनी (धन की आय) कम हो और खर्चा ज्यादा हो तो परिवार का सुख चैन मिट जाता है, ताकत कम हो और गुस्सा ज्यादा आवे तो पिटने के आसार (लक्षण) समझ में आते हैं।