फूल प्रभु की पूजन में काम आते हैं, इसलिए उनकी प्रशंसा होती है। प्रभु चरणों में समर्पित होते हैं फूल, किन्तु भगवान् कभी उन्हें छूते नहीं, कारण प्रभु ने काम-वासना को नष्ट किया है, शरण हीन हुए फूल शरण की आस ले प्रभु चरणों में आते हैं अवश्य। प्रभु का पवित्र सम्पर्क पाने से हम शूलों के जीवन में फूलों से विपरीत जो परिणमन हुआ सो और सुनो - किस दिशा से किस दिशा तक, कब से अब तक और अब से कब तक इत्यादि सूक्ष्म से सूक्ष्म स्थान एवं समय का ज्ञान हमें शूलों के द्वारा ही हो पाता है। यदि ऐसा ना हो तो बताओ की दिशा सूचक यन्त्र (चुम्बकीय सुई) एवं समय सूचक यन्त्र (घड़ियों) में काँटे क्यों लगे रहते हैं।
"इस बात को भी हव्मे नहीं भूलना है
कि
घन-घमंड से भरे हुए
उद्दण्डों की उद्दण्डता दूर करने
दण्ड-सहिंता की व्यवस्था होती है
और
शास्ता की शासन-शय्या फूलवती नहीं
शूल–शीला हो,
अन्यथा,
राजसत्ता वह राजसता की
रानी-राजधानी बनेगी वह !" (पृ. 104)
शासन करने वाले शासक, राजा की शासन-व्यवस्था फूलों के समान मुलायम-कोमल नहीं, अपितु शूलों के समान कठोर होनी चाहिए तभी घोर घमण्ड से भरे हुए, अपराधियों की उद्ण्डता को दूर किया जा सकता है। अन्यथा राजसत्ता भोग-विलास का ही साधन बन जायेगी और चारों ओर उद्ण्डता, अन्याय का साम्राज्य छा जायेगा।
काँटों के दल के मुख से अपनी महिमा प्रशंसा सुन टूटा-कटा काँटा कहता है माँ माटी से कि-शिल्पी की बुद्धि सही दिशा की ओर हो, उसे अपनी गलती का अहसास हो इसलिए उसे पीड़ा देना आवश्यक है। नहीं तो कम से कम अपनी इस भूल के लिए शिल्पी क्षमा याचना तो करे।