पुरुष (आत्मा) का पुद्गल पर नहीं किन्तु चेतना (निज ज्ञान-दर्शन) पर नियंत्रण होना चाहिए। चेतन का नियंत्रण इन्द्रिय समूह पर नहीं किन्तु मन पर होना चाहिए। मन का नियंत्रण शरीर पर नहीं किन्तु इन्द्रिय समूह पर होना चाहिए और इन्द्रिय समूह का नियंत्रण, शासन सदा शरीर पर होना चाहिए। फिर भी इतना जरूर ध्यान रखना चाहिए कि शरीर किसी का शासक स्वामी न बने, वह शासित-सेवक ही बने, कारण तन भोग्य है भोक्ता नहीं। भोक्ता तो अनन्त गुणों का स्वामी, संवेदन करने वाला पुरुष ही सब शासकों का शासक हो सकता है अन्य नहीं। भावार्थ यह हुआ कि आत्मा चेतन को, चेतन मन को, मन इन्द्रिय समूह को, इन्द्रिय समूह तन को वश में रखें, किन्तु आत्मा के वश में सब हो तन के वश में कोई नहीं।
चेतन की क्रियावती शक्ति जाग्रत हुई, शिल्पी के ओठीं पर मन्द मधुरिम मुस्कान उभर आती है। उपयोग (आत्मा का परिणाम) में परिवर्तन आते ही मन वचन और काय सभी अपने काम में लग गए, चालक से संचालित यन्त्र के समान। शिल्पी का दाहिना पैर कार्य प्रारम्भ करता हुआ धीरे-धीरे माटी पर उतरता है और चाँदनी को तरसती चकवी (एक मादा पक्षी) के समान माटी, शिल्पी चरण का स्वागत करती है और शीघ्रता से उलटती-पलटती वह। शिल्पी के पदों ने अनुभव किया-माटी की मृदुता का स्पर्श, अस्पर्शी प्रभु के स्पर्श को भी पार कर रहा है, असम्भव कार्य संभव-सा लगा। माटी की मृदुता के समक्ष मखमल के समान कोमल मार्दव का मान भी फीका पड़ गया। कोमल कोंपलों की मुलायमता भी कहीं खो गई।
1. गुणी = जो गुण को धारण करें। पुरुष है गुणी तो चेतन उसका गुण है। जो सुख-दु:ख का अनुभव करे, सो चेतन है।
2. अस्पर्शी = जिसे छुआ न जा सके