फिर गम्भीर हो कुछ और कहती है करुणा - मेरा रोते रहना यदि तुम्हें अच्छा लगता है तुम्हें सुख मिलता है तो मैं रो ही रही हूँ और रोती रहूँगी। यदि मेरे रहने से तुम्हारा दिल धड़कता हो, लगता है कि माँ हमारे लिए बाधक हो रही है तो मैं अपने अस्तित्व को मिटाना चाहूँगी। प्रभु से प्रार्थना करती हूँ कि -हे भगवान्! मेरा जीवन समाप्त हो जाए, मेरा अस्तित्व पूर्ण रूप से आकाश में विलीन हो जाए बस! करुणा की बात सुन, प्रभु जबाव देते हुए कहते हैं कि -
"होने का मिटना सम्भव नहीं है, बेटा !
होना ही संघर्ष - समर का मीत है
होना ही हर्ष का अमर गीत है।" (पृ. 150)
जो है वह पूर्णत: कभी मिट नहीं सकता यही प्रकृति का नियम है। द्रव्य कभी नष्ट नहीं होता, मिटने वाली तो पर्याय है। फिर जो होगा वह ही तो मोक्ष, सच्चे सुख की प्राप्ति के लिए कर्मों से संग्राम, युद्ध करेगा। यह संघर्ष ही अस्तित्व का परम मित्र और सच्चे सुख का शाश्वत गान है। प्रभु की बात सुन करुणा अन्तर्मुखी हो अपनी आत्मा से कहती है, हे भोक्ता पुरुष मैं तुमसे क्षमा चाहती हूँ कि मर-मिटने की तुम्हारी यह इच्छा पूर्ण नहीं हो सकती।