उसके बाद शिल्पी ने कुम्भ पर जीवन के वास्तविक रहस्यों को प्रकट करने वाली, शिक्षाप्रद कुछ संख्याओं का अंकन, कुछ चित्रों का चित्रण और कविताओं की रचना की। कुम्भ के कर्ण स्थान पर ९९ और ९ की संख्या लिखी गई जो कि कानों में पहने कुण्डल सी सुशोभित हो रही है और अपना परिचय दे रही है। ९९ की संख्या दुःखी संसार का प्रतीक है, जिससे मोह का विस्तार होता है, ९ की संख्या क्षीरसार यानी घी के समान है जो शाश्वत पद सिद्ध दशा का प्रतीक है, जिससे मुक्ति का द्वार खुलता है।
यह भी देखो ९९ में किसी भी संख्या का गुणा करो जैसे - ९९x२ = १९८, १+९+८=१८, १+८=९ । इसी प्रकार गुणित क्रम से बढ़ाते जाने पर गुणनफल बढ़ता दिखता है किन्तु लब्ध संख्या ९ ही बचती है फलित यह हुआ कि ९९ संख्या कष्टदायी, छलकपट वाली और नष्ट होने के स्वभाव वाली, जड़ को ही प्रकाशित करती है। कहा भी है ''संसार ९९ का चक्कर है'' कहावत ठीक-ठीक घटित होती है। दूसरी तरफ ९ की संख्या में किसी भी संख्या का गुणा करो ९४२ = १८, १+८ = ९ गुणनक्रम ९ तक ले जाओ, लब्ध संख्या सदा ९ ही मिलेगी। फलित यह हुआ ९ की संख्या वह आश्रय है जिसमें जीवन सुरक्षित रहता है, यह अविनश्वर स्वभाव वाली, अजर अमर अविनाशी आत्म तत्त्व का कथन करने वाली है। इसलिए-
"भविक मुमुक्षुओं की दृष्टि में
९९ हेय हो और
ध्येय हो ९
नव-जीवन का स्रोत !" (प्र. १६७)
भव्य जीव जो सदा मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं, उनकी दृष्टि में ९९ सदा ही छोड़ने योग्य होना चाहिए एवं जीवन का लक्ष्य ९, आत्म तत्त्व होना चाहिए जो कि नवीन सिद्ध दशा प्राप्त करने का मूल साधन है।