Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • 26. उलझी रस्सी : कसी गाँठ

       (0 reviews)

    माटी को फुलाने हेतु पानी की आवश्यकता है। उपाश्रम के प्रांगण में ही स्वच्छ, मधुर जल से भरा कूप है। हाथ में बाल्टी ले कूप के तट पर पहुँचता है शिल्पी। जीवाणी कूप में सुरक्षित पहुँचाने हेतु बाल्टी में एक कड़ा लगा है, भंवरदार (ऽ) आकार की कड़ी रस्सी में बंधी है। रस्सी को उलझी देख शिल्पी बाल्टी को नीचे रख देता है और रस्सी को सुलझाने लगता है। रस्सी शीघ्रता से सुलझ भी जाती है, किन्तु सुलझाते-सुलझाते रस्सी के बीचों-बीच एक अत्यन्त कसी गांठ आ पड़ती है। शिल्पी सोचता है इस गांठ को खोलना तो बहुत जरूरी है, अत: पुरुषार्थ प्रारम्भ करता है।

     

    हाथ के दोनों अंगूठों और तर्जनियों में पूरी शक्ति लगाकर केन्द्रित करता है। भीतर का श्वांस भीतर और बाहर का बाहर ही रह जाता है और यहाँ बिना सोचे ही कुम्भक प्राणायाम जैसी दशा बन गई। इस समय शिल्पी के दोनों होंठ एक दूसरे को चबाते हुए से लग रहे हैं, दोनों भुजाओं की नसों का समूह खिचा हुआ है, त्वचा में उभार सा आया है, इतने पुरुषार्थ पर भी गांठ खुल नहीं रही है। अंगूठे की ताकत कम हुई, दोनों तर्जनी लगभग चेतना रहित, बेहोश-सी हो गई हैं। नाखून भी लाल-लाल खूनदार हो गए हैं, पर गांठ नहीं खुल पा रही है।

     

    इसी बीच दाँतों का समूह शिल्पी से कहता है कि – हे स्वामिन! हमें सेवा देकर उपकृत करो और इस समय यह उचित एवं आवश्यक भी है। हमने यही नीति सुनी है कि –

     

    "बात का प्रभाव जब

    बल-हीन होता है

    हाथ का प्रयोग तब

    कार्य करता है।

    और

    हाथ का प्रयोग जब

    बल-हीन होता है

    हथियार का प्रयोग

    तब आर्य करता है।" (पृ. 6o )

     

    “जब बातों से काम न निकले तब हाथों का प्रयोग करना चाहिए और जब हाथों का बल भी कम पड़ जाए तब सजन पुरुषों को अस्त्र-शस्त्र का भी प्रयोग करना चाहिए,” इसीलिए अब बिना किसी संकोच के आप हमें रस्सी दे दीजिए।

     

    45.jpg

     

    दाँतों की बात को उचित मान शिल्पी, रस्सी को दाँतों तक पहुँचा देता है। तभी शूल का दाँत सब दाँतों से कहता है कि, मेरे भाइयों गांठ के सन्धि स्थान की खोज तुम नहीं कर सकते। अत: दाहिनी ओर के नीचे वाला शूल का दाँत सन्धि स्थान को खोजने हेतु चारों ओर से गांठ को देखता है फिर शीघ्र ही सन्धि की गहराई में उतर जाता है, उसी ओर के ऊपरी शूल के दाँत का सहयोग ले। दोनों शूलों के अग्रभाग एक दूसरे से मिल गए जिससे उनकी मजबूत जड़ों को और ताकत मिल जाती है।


    इतना सब होने पर भी गांठ का खुलना तो दूर वह हिल भी नहीं रही है, अपितु शूल की जड़ें ही लगभग हिलने लगीं। दाँतों के अग्रभाग की नोकें टूटने वाली हैं, ऐसा लग रहा है। इस संघर्ष में मुलायम मसूड़े तो बेचारे छिल-छुल गए, लहुलुहान से हो गए उनमें से माँस ही बाहर झाँकने लगा है।



    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...