माटी को फुलाने हेतु कूप से जल निकालना है, सो शिल्पी उलझी रस्सी को सुलझाता है, सुलझते-सुलझते रस्सी में एक कसी गाँठ आ पड़ती है। जिसे खोलने का प्रयास-अंगूठे और अँगुलियों की असफलता, दाँतों की प्रार्थना, रस्सी दाँतों तक, संघर्षित शूल-चूल-मसूड़ों की दशा देख रसना द्वारा रस्सी को सरोष उद्बोधन, भयभीत भविष्य को जान, गांठ का ढीली पड़ना, दाँतों में गरमाई आना और रस्सी का खुलना। रस्सी की जिज्ञासा-गाँठ से क्या बाधा ? सी रसना द्वारा समाधान-ग्रन्थी हिंसा का कारण है इसीलिए तथा जीव रक्षण हेतु गाँठ खोलना अनिवार्य था।
माटी के जीवन को विकसित करने हेतु शिल्पी विचार कर रहा है कि मृदु माटी को अनुपात से उचित मात्रा में जल मिलाकर फुलाना है, जल में माटी को घुलाना है और क्रम-क्रम से दु:ख के क्षण, पुरानी बातों को माटी भूल जाए और उसके कण-कण में, प्रतिपल में नयापन आ जाए बस! ऐसा पुरुषार्थ मुझे करना है, आज माटी को फुलाना है, बस!