शिल्पी की शंका सुनकर माटी अपने अतीत जीवन की ओर लौट जाती है, उत्तर के रूप में कुछ नहीं कह पाती केवल लंबी श्वांस लेकर छोड़ देती है। इस क्रिया से शिल्पी का संदेह कुछ समाप्त-सा हुआ, माटी की सात्विकता पर विश्वास हुआ किन्तु फिर भी सही-सही कारण ज्ञात न होने से जिज्ञासा बनी रही, जिसे माटी ने समझ लिया और अव्यक्त भावों को प्रकट करने हेतु माटी शब्दों का सहारा ले, कुछ कहती है शिल्पी से
"अमीरों की नहीं, गरीबों की बात है ;
कोठे की नहीं, कुटिया की बात है।" (पृ. 32)
“अमीरों की हवेलियों में नहीं किन्तु गरीबों की झोपड़ियों में वर्षाकाल में टपकती बूंदों द्वारा छेद पड़ जाते हैं। फिर तो मेरे इस जीवन में सदा रोना ही रोना हुआ है। इन दीनहीन आँखों से निरन्तर अश्रु-धारा बहती रही है, ऐसी दशा में इन गालों का सछिद्र होना स्वाभाविक ही है और फिर प्यार और पीड़ा के कारण हुए घावों में अन्तर भी तो होता है ना! राग और वैराग्य के भाव एक जैसे होते हैं क्या शिल्पी जी”?
माटी की जीवन गाथा, माटी के मुख से सुन शिल्पी बोल उठा –“सब कुछ सहना, कुछ ना कहना वास्तविक जीवन यही है धन्य! और यह भी एक अकाट्य नियम है कि
"अति के बिना
इति से साक्षात्कार सम्भव नहीं
और
इति के बिना
अथ का दर्शन असम्भव!" (पृ. 33 )
इसका अर्थ यह हुआ कि जब दुख अति हो जावे तो समझना दुख समाप्त होने को है और दुख का समापन ही सुख का मंगलाचरण है।”