इधर कुएँ में ऊपर से नीचे उतरी बाल्टी पूरी तरह पानी में डूब जाती है, बाल्टी में पानी लबालब भर चुका है दोनों एक दूसरे में पूरी तरह डूब गए हैं। संकल्पिता मछली "धम्मं सरण पव्वजामि" मंत्र को हृदय में धारण करती हुई बाल्टी में प्रवेश कर जाती है। उसकी आस्था और अधिक मजबूत होती जा रही है, साथ ही साथ आत्मा भी निर्मलता को प्राप्त हो रही है। धैर्य की चरम-सीमा और बुद्धि की इस श्रद्धा को देख सभी मछलियाँ आश्चर्यचकित हो गई। कुछ पलों के लिए उनका भय छू मन्तर/दूर हो गया, भय को भूल-सी गई मछलियाँ।
दृढ़ता पूर्वक एक ने सत्कार्य करने का मन बनाया और सभी ने उसके इस कार्य की मन ही मन सराहना की। एक ने भाव बनाया, शेष सब प्रभावित हुई। एक को सन्मार्ग मिला, शेष सभी मछलियाँ दिशा पा गई। संकल्पिता मछली को दया धर्म का सहारा मिला, मन में एक नई किरण प्रस्फुटित हुई और सभी मछलियाँ उस उजली ज्योति से प्रकाशित हुई मानों तत्काल बाहर और भीतर से नहाई हों।
इस अवसर पर मछली का पूरा परिवार उपस्थित हो चुका है। सभी मछलियों की मुख मुद्रा प्रसन्न लग रही है, तैरती हुई मछलियों से उठने वाली तरंगें और तरंगों से घिरी मछलियाँ ऐसी लग रही हैं, मानो प्रत्येक मछली के हाथ में एक-एक फूलमाला है, संकल्पिता महा-मछली का सम्मान किया जा रहा है। सभी मिलकर नारे लगाती हुई कह रहीं हैं –
"मोक्ष की यात्रा
.....सफल हो
मोह की मात्र
.....विफल हो
धर्म की विजय हो
कर्म का विलय हो
जय हो, जय हो,
जय-जय-जय हो!" (पृ. 76)
तुम्हारी यह मुक्ति की यात्रा सार्थक हो, मोह का समूह नष्ट हो, समीचीन धर्म की विजय और कर्मों का नाश हो, सदा जय-जयकार हो।