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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • 39. मासूमियत - समाधि की माँ

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    अन्त-अन्त में यही बात तुमसे कहनी है बेटा! कि अपने जीवन में छली-कपटी मछलियों सी छली-मायावी नहीं बनना। कभी भी पच्चेंद्रियों के विषयों की लहरों में भूलकर भी नहीं बहना, संयम रखना। और सुनो बेटा! सदा

     

    मासूम बालकवत् सहज और सरल बने रहना, सरल परिणाम ही समाधि को जन्म देता है। और माटी संकेत करती है शिल्पी को इस भव्यात्मा को शीघ्र ही सुरक्षा के साथ कूप में पहुँचा दो, क्योंकि जल ही इसका जीवन है, बिना जल के इसके प्राण टिक न सकेंगे। इसकी यदि मृत्यु हो गई तो दोष के भागीदार आपको बनना पड़ेगा, जिसका फल असहनीय दुख होगा।


    शिल्पी ने जल छान लिया। छने के ऊपर बचे जलीय जन्तु तथा मछली को, बाल्टी में शुद्ध जल डालकर (बिलछानी करते हुए) सावधानी के साथ कुएँ में सुरक्षित पहुँचा देता है। कुएँ में एक बार फिर “दया विसुद्धो धम्मो" ध्वनि गूंजती है जो कि ध्वनि से ध्वनि प्रतिध्वनि के रूप में परिवर्तित हो कुएँ की दीवारों से टकराती-टकराती ऊपर आती है और उपाश्रम के प्रांगण में लीन हो जाती है।



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