संकल्पिता मछली ने सखी की बात सुनी और वह पुन: कहती है कि-हे सखी। इतना सब सोचने-विचारने का यह समय नहीं है, अपना भाग्य भी तो कुछ होता है ना? यदि तुझे नहीं आना तो मत आ, किन्तु निष्प्रयोजन उपदेश देकर मेरे समय को बर्बाद मत कर और वह संकल्पिता मछली, सहेली को वहीं छोड़, स्वयं अकेले ही बाल्टी की ओर चल पड़ती है। चलते-चलते कुछ समय के अनुकूल युक्ति पूर्ण बातें कहती है –
"प्रत्येक व्यवधान का
सावधान हो कर
सामना करना
नूतन अवधान को पाना है
या यूँ कहें इसे-
अन्तिम समाधान को पाना है।"(पृ. 74)
जीवन में आने वाली प्रत्येक बाधा का जागृत रहकर मुकाबला करने से ही कुछ नया खोजा जा सकता है, नया निर्माण किया जा सकता है। अथवा यूँ कहें कि समस्याओं का अन्तिम समाधान पाया जा सकता है। जो व्यक्ति बाधाओं से डर कर, आगे बढ़ने का मन ही नहीं बनाता वह कभी अपने जीवन को उन्नत/अच्छा नहीं बना सकता। संसार में अच्छे-बुरे सभी प्रकार के लोग रहते हैं, गुण हैं तो दोष भी। अत: गुणों के साथ दोषों का ज्ञान होना भी अनिवार्य है किन्तु दोषों से द्वेष रखना उन्हें सदा बुरा-बुरा ही कहते रहना, अपने दोषों को बढ़ाना और गुणों को नष्ट करना है।
काँटों से द्वेष भाव रखकर फूलों की सुगन्धी से ही दूर रहना अज्ञानता/मुर्खता ही मानी जावेगी किन्तु
"काँटों से अपना बचाव कर
सुरभि-सौरभ का सेवन करना
विज्ञता की निशानी है
सौ.....
विरलों में ही मिलती है !" (पृ. 74)
काँटों से अपनी सुरक्षा करते हुए फूलों की सुगन्ध का पान करना होशियारी का लक्षण है, सो कुछ गिने-चुने लोगों में ही पाया जाता है सबमें नहीं।