आचार्य कुन्दकुन्द के मान्य ग्रन्थों में प्रवचनसार भी महत्त्वपूर्ण दार्शनिक ग्रन्थ है। इसमें तीन अधिकार हैं-ज्ञानतत्त्व प्रतिपादक महाधिकार, सम्यग्दर्शन या ज्ञेयाधिकार और चारित्राधिकार। महाधिकार में ज्ञानाधिकार, सुखाधिकार एवं शुभ परिणामाधिकार सम्मिलित हैं। ज्ञेयाधिकार में द्रव्य एवं द्रव्य के भेदों का लक्षण एवं उनका विवेचन है। तथा चरणानुयोग चूलिका अधिकार में मुनिधर्म, आगम-महत्त्व, मोक्षमार्ग, शुभोपयोग और शुद्धोपयोग का वर्णन है।
आचार्यश्री ने इस अविकल ग्रन्थ का पद्यानुवाद वसन्ततिलका छन्द में किया है। यह पद्यानुवाद श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र थूबौन जी, गुना (म.प्र.) में सन् १९७९ के चातुर्मास-वर्षायोग काल में हुआ था।