भूल क्षम्य हो
लेखक कवि मैं हूँ नहीं मुझमें कुछ नहिं ज्ञान।
त्रुटियाँ होवें यदि यहाँ शोध पढ़ें धीमान ॥१॥
स्थान एवं समय परिचय
रहा तपोवन नियम से रम्य क्षेत्र थूबौन,
जहाँ ध्यान में उतरता मुनि का मन हो मौन ॥२॥
शांतिनाथ जिननाथ है दर्शन से अति हर्ष।
धारा वर्षायोग उन चरणन में इस वर्ष ॥३॥
गात्र गगन गति गंध की भाद्र पदी सित तीज।
पूर्ण हुआ यह ग्रन्थ है भुक्ति मुक्ति का बीज ॥४॥
मंगल कामना
विस्मृत मम हो विगत सब विगलित हो मद मान।
ध्यान निजातम का करूं करूं निजी गुणगान ॥१॥
सादर शाश्वत सारमय समयसार को जान।
गट गट झट पट चाव से करूँ निजामृत पान ॥२॥
रम रम शम दम में सदा मत रम पर में भूल।
रख साहस फलत: मिले भव का पल में कूल ॥३॥
चिदानन्द का धाम है ललाम आतमराम।
तन मन से न्यारा दिखे मन पे लगे लगाम ॥४॥
निरा निरामय नव्य मैं नियत निरंजन नित्य।
यह केवल नियमित जपूँ तजूँ विषय अनित्य ॥५॥
मन वच तन में सौम्यता धारो बन नवनीत।
सार्थक तब जप तप बने प्रथम बनो भवभीत ॥६॥
रति रतिपति से मति बने गति पंचम गति होय।
कारण सादृश कार्य हो समाधान मति होय ॥७॥
सार यही जिनशास्त्र का सादर समता धार।
रहा बंध पर राग है विराग भवदधि पार ॥८॥