आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज, आचार्य कुन्दकुन्द के परम भक्त हैं, वास्तव में कुन्दकुन्द आचार्य ने समयसार आदि ग्रन्थों की रचना कर भगवान् महावीर की तात्त्विक गिरा को भव्यजनों के लिए सुबोध बना दिया है। यही कारण है कि इन्होंने भी आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों का पद्यानुवाद अधिक किया है। जैन गीता में भी समयसार, प्रवचनसार, नियमसार आदि की गाथाएँ अधिक हैं, जिनका हिन्दी पद्यानुवाद सर्वप्रथम इन्होंने किया। इसके पश्चात् ‘समयसार कलश', प्रवचनसार, नियमसार आदि का पद्यानुवाद किया।
मोह और प्रमाद के निवारणार्थ यह पद्यमय अनुवाद किया गया है। केवली या श्रुतकेवली आचार्यों ने जिस नियमसार को कहा है, वही यहाँ विद्यमान है। प्रवृत्ति एवं निवृत्ति तो प्राणिमात्र के लक्षण हैं, पर मोक्षाधिकारी मानव को स्वैराचार वर्जित है। उसे यदि स्वभाव से प्रतिष्ठित होना है तो नियम-संयमपूर्वक जिजीविषा की चरितार्थता के लिए चर्या बनानी पड़ेगी।
थूबौन नाम का रम्यक्षेत्र मध्यप्रदेश के गुना जिले में स्थित है तथा नियमों की दृष्टि से तपोवन ही है, जहाँ वास करते हुए मुनि का मन मौनी बनकर ध्यान में उतर जाता है, वहाँ भगवान् शान्तिनाथ के दर्शन से परमाह्लाद प्राप्त होता है। इस वर्ष उन्हीं के चरणों में वर्षावास का योग लगा। वर्ष था वीर निर्वाण संवत् २५०५, शनिवार, २५ अगस्त, १९७९ तथा तिथि भाद्रपद शुक्ल तृतीया थी, जब सांसारिक भोगों से मुक्ति का बीजरूप यह ग्रन्थ पूर्ण हुआ।