व्यवहार रत्नत्रय
तत्त्वार्थ में रुचि हुई, दृग हो वहीं से, सज्ज्ञान हो मनन आगम का सही से।
सच्चा तपश्चरण चारित नाम पाता, है मोक्ष मार्ग व्यवहार यही कहाता ॥२०८॥
श्रद्धान लाभ, बुध दर्शन से लुटाता, विज्ञान से सब पदार्थन को जनाता।
चारित्र धार विधि आस्रव रोध पाता, अत्यंत शुद्ध निज को तप से बनाता ॥२०९॥
निस्सार है चरित के बिन, ज्ञान सारा, सम्यक्त्व के बिन, रहा मुनि भेष भारा।
होता न संयम बिना तप कार्यकारी, ज्ञानादि रत्नत्रय हैं भव दुःखहारी ॥२१०॥
विज्ञान का उदय हो दृग के बिना ना, होते न ज्ञान बिन मित्र! चरित्र नाना।
चारित्र के बिन न हो शिव मोक्ष पाना, तो मोक्ष के बिन कहाँ सुख का ठिकाना ॥२११॥
हा! अज्ञ की सब क्रिया उलटी दिशा है, भाई क्रिया रहित ज्ञान व्यथा वृथा है।
पंगू लखें अनल को न बचे कदापि, दौड़े भले ही वह अंध जले तथापि ॥२१२॥
विज्ञान संयम मिले फल हाथ आता, हो एक चक्ररथ को चल ओ न पाता।
होवे परस्पर सहायक पंगु अन्धा, दावाग्नि से बच सके कहते जिनंदा ॥२१३॥
निश्चय रत्नत्रय सूत्र
संसार में समयसार सुधा-सुधारा, लेता प्रमाण नय का न कभी सहारा।
होता वही दृग मयी वर बोध धाम, मेरा उसे विनय से शतशः प्रणाम ॥२१४॥
साधू चरित्र दृग बोध समेत पा लें, आत्मा उन्हें समझ आतम गीत गा लें।
ज्ञानी नितांत निज में निज को निहारें, वे अंत में गुण अनंत अवश्य धारें ॥२१५॥
ज्ञानादि रत्नत्रय में रत लीन होना, धोना कषाय मल को बनना सलोना।
स्वीकारना न करना तजना किसी को, तू जान मोक्षपथ वास्तव में इसी को ॥२१६॥
सम्यक्त्व है वह निजातम लीन आत्मा, विज्ञान है समझना निज को महात्मा।
आत्मस्थ आतम पवित्र चरित्र होता, जानो जिनागम यही अयि! भव्य श्रोता ॥२१७॥
आत्मा मदीय यह संयम बोध-धाम, चारित्र दर्शनमयी लसता ललाम।
है त्याग रूप सुख कूप, अनूप भूप, ना नेत्र का विषय है, नित है अरूप ॥२१८॥
Edited by संयम स्वर्ण महोत्सव