गोमटेश अष्टक
(1979)
‘गोमटेस थुदि' में जैन शौरसेनी प्राकृत भाषा में आठ पद्य हैं, जिनमें भगवान् गोमटेश की स्तुति है। ‘गोमटेस थुदि' का संस्कृत रूपान्तर गोमटेश स्तुति' ही इस बात को पुष्ट करता है। इस स्तुति की रचना दशवीं शताब्दी में गोम्मटसार जैसे परम गम्भीर जैनदर्शन शास्त्र के प्रणेता महान् आचार्यश्री नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती ने की थी। वे जैन-दर्शन के पारंगत, प्राकृत भाषा के मर्मज्ञ एवं सुविख्यात उद्भट विद्वान् आचार्य थे। दक्षिण भारत में अवतरित होकर उन्होंने समस्त भारत को अपनी कृतियों से ज्ञानालोकित कर दिया था, जिसका प्रकाश आज तक जैनाजैन पंडितों के लिए चमत्कार जनक है।
यह स्तुति-काव्य आकार में अत्यन्त लघु है, परन्तु बड़ा ही भक्ति-प्रवण, कमनीय भावावलि से संपृक्त एवं मनोरम है; लगता है आचार्य नेमिचन्द्र का हृदय ही द्रवित होकर वाणी का रूप ले इसमें साकार हो गया है। यह काव्य अत्यन्त मनोहारी और कण्ठस्थ करने योग्य है, यह काव्य उपजाति वृत्त में निबद्ध है, किन्तु आचार्यश्री ने इसका पद्यानुवाद ज्ञानोदय छन्द में श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र थूबौन जी, गुना (म० प्र०) में सन् १९७९ के चातुर्मासकाल में किया है। इस कृति में गोमटेश बाहुबली भगवान् का स्तवन हुआ है
काम धाम से धन-कंचन से सकल संग से दूर हुए,
शूर हुए मद-मोह-मार कर समता से भरपूर हुए।
एक वर्ष तक एक थान थित निराहार उपवास किये;
इसीलिए बस गोमटेश जिन मम मन में अब वास किए ॥८॥
Edited by संयम स्वर्ण महोत्सव