एकीभाव स्तोत्र
(1971)
आचार्य वादिराज प्रणीत संस्कृत भाषाबद्ध इस कृति का ‘मन्दाक्रान्ता छन्द' में पद्यबद्ध भाषान्तरण आचार्यश्री द्वारा किया गया है। इस कृति में यह कहा जा रहा है कि जब आराधक के हृदय में आराध्य से एकीभाव हो गया है, तब यह भव-जलन कैसे हो रही है ?
“कैसे है औ! फिर अब मुझे दुःख दावा जलाता ?'' ॥६॥
रचयिता का हृदय पुकार उठता है
जो कोई भी मनुज मन में आपको धार ध्याता,
भव्यात्मा यों अविरल प्रभो! आप में लौ लगाता।
जल्दी से है शिव सदन का श्रेष्ठ जो मार्ग पाता;
श्रेयोमार्गी वह तुम सुनो! पंचकल्याण पाता ॥२४॥
इस काव्य का पद्यानुवाद भी आपने मदनगंज-किशनगढ़, अजमेर (राज.) में सन् १९७१ के चातुर्मास काल में किया है।