द्वादशानुप्रेक्षा
(वसंततिलका छन्द)
मंगलाचरण
प्रतिज्ञा वाक्य
उत्कृष्ट ध्यान बल से भव बंध तोड़ा, दे सिद्ध ढोक उनको द्वय हाथ जोड़ा।
चौबीस तीर्थंकर की कर वंदना मैं, पश्चात् कहूँ सुखद द्वादश भावनाएँ ॥१॥
संसार, लोक, वृष, आस्रव, निर्जरा है, अन्यत्व औ अशुचि, अध्रुव, संवरा है।
एकत्व औ अशरणा अवबोधना ये, भावें सुधी सतत द्वादश भावनायें ॥२॥
Edited by संयम स्वर्ण महोत्सव