भूल क्षम्य हो
लेखक कवि मैं हूँ नहीं, मुझमें कुछ नहिं ज्ञान।
त्रुटियाँ होवें यदि यहाँ, शोध पढ़े धीमान् ॥१॥
गुरु-स्तुति
तरणि ज्ञानसागर गुरो, तारो मुझे ऋषीश।
करुणाकर! करुणा करो, कर से दो आशीष ॥२॥
कुन्दकुन्द को नित नमूँ, हृदय-कुन्द खिल जाय।
परम सुगंधित महक में, जीवन मम घुल जाय ॥३॥
समय-समय पर समय में, सविनय समता धार।
सकल संग संबंध तज, रम जा, सुख पा सार ॥४॥
भव, भव भववन भ्रमित हो, भ्रमता-भ्रमता काल।
बीता अनन्त वीर्य, बिन, बिनसुख बिन वृषसार ॥५॥
पर पद, निज पद जान, तज पर पद, भज निजकाम।
परम पदारथ फल मिले, पल-पल जप निज नाम ॥६॥
मोक्ष-मार्ग पर तुम चलो, दुख मिट, सुख मिल जाय।
परम सुगंधित ज्ञान की, मृदुल कली खिल जाय ॥७॥
तन मिला तुम तप करो, करो कर्म का नाश।
रवि शशि से भी अधिक है, तुममें दिव्य प्रकाश ॥८॥
विषय-विषम विष है सुनो! विष सेवन से मौत।
विषय कषाय विसार दो, स्वानुभूति सुख स्रोत ॥९॥
स्थान एवं समय-परिचय
नयन मनोरम क्षेत्र है, नैनागिरि अभिराम।
जहाँ विचरते सुर सदा, ऋषि मन ले विश्राम ॥१॥
वर्ण गगन गति गंध का, दीपमालिका योग।
पूर्ण हुआ अनुवाद है, ध्येय मिटे भव रोग ॥२॥