‘अष्टपाहुड' आचार्य श्री कुन्दकुन्द के प्राकृत ग्रन्थ 'अष्टपाहुड' का ही हिन्दी पद्यानुवाद है। प्रारम्भ में मंगलाचरण है, जिसमें सर्वप्रथम देव-शास्त्र-गुरु का स्तवन है। पुनः आचार्य श्री कुन्दकुन्द को नमस्कार है और तदनन्तर गुरु श्री ज्ञानसागरजी महाराज से विघ्नविनाशार्थ करुणापूर्ण आशीर्वाद की प्रार्थना है। अष्टपाहुडों में रचित मूल ग्रन्थ का उसी क्रम से हिन्दी पद्यानुवाद है। इसमें दर्शनपाहुड, सूत्रपाहुड, चारित्रपाहुड, बोधपाहुड, भावपाहुड, मोक्षपाहुड, लिंगपाहुड तथा शीलपाहुड का विवरण प्रस्तुत कर अन्य ग्रन्थों की तरह इसका भी समापन निर्माण के स्थान एवं समय परिचय के साथ हुआ है।
अत्यन्त मनोरम नयनाभिराम नैनागिरि क्षेत्र है, जहाँ देवगण सदा विचरण करते हैं तथा ऋषि-मुनि विश्राम कर शान्ति का अनुभव करते हैं। वहीं वीर निर्वाण संवत् २५०५ (विक्रम संवत् २०३५) की कार्तिक कृष्ण अमावस्या दीपमालिका दिवस, ३१ अक्टूबर, १९७८, मंगलवार के दिन यह अनुवाद पूर्ण हुआ।
अनुवाद के अन्त में इस ग्रन्थ की समाप्ति के स्थान एवं समय का परिचय आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज स्वयं इस प्रकार देते हैं-
नयन मनोरम क्षेत्र हैं, नैनागिरि अभिराम।
जहाँ विचरते सुर सदा, ऋषि मन ले विश्राम॥
वर्ण गगन गति गन्ध का, दीपमालिका योग।
पूर्ण हुआ अनुवाद है, ध्येय मिटे भव रोग॥