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सोशल मीडिया / गुरु प्रभावना धर्म प्रभावना कार्यकर्ताओं से विशेष निवेदन ×
नंदीश्वर भक्ति प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • मंगलाचरण

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    मंगलाचरण

     

    सन्मति को मम नमन हो, मम मति सन्मति होय।

    नर-सुर-पशु गति सब मिटे, पंचम गति होय ॥१॥

     

    चन्दन चन्दर - चाँदनी, से जिन-धुनी अतिशीत।

    उसका सेवन मैं करूँ, मन-वच-तन कर नीत ॥२॥

     

    सुर, सुर-गुरु तक गुरु चरण, रज सर पर सुचढ़ाय।

    यहमुनि, मन-गुरु-भजन में, निशिदिन क्यों नलगाय ॥३॥

     

    कुन्दकुन्द को नित नमू, हृदय-कुन्द खिल जाय।

    परम सुगन्धित महक में, जीवन मम घुल जाय ॥४॥

     

    गुण-निधि समन्तभद्रगुरु, महके अगुरु सुगंध।

    अर्पित जिनपद में रहे, गन्ध-हीन मम छन्द ॥५॥

     

    तरणि ज्ञानसागर गुरो, तारो मुझे ऋषीश।

    करुणाकर! करुणा करो, कर से दो आशीष ॥६॥

     

    देवागम का मैं करूँ, पद्यमयी अनुवाद।

    मात्र प्रयोजन मम रहा, मोह मिटे परमाद ॥७॥

    Edited by संयम स्वर्ण महोत्सव


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    मोनिका जैन टड़ा

       1 of 1 member found this review helpful 1 / 1 member

    तरणि विद्यासागर गुरो, तारो मुझे ऋषीश।

     

    करुणाकर! करुणा करो, कर से दो आशीष 

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